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________________ समाधिनिद्देसो २६१ कम्मट्टानेसु अप्पनापुब्बभागचित्तंसु च एकग्गता उपचारसमाधि, अवसेसकम्मट्ठानेसु चित्तेकग्गता अप्पनासमाधि। सो दुविधो पि तेसं कम्मट्ठानानं भावितत्ता भावितो होति। तेन वुत्तं- "कथं भावेतब्बो ति इमस्स पदस्स सब्बप्पकारतो अत्थवण्णना समत्ता" ति। समाधिआनिसंसकथा २८. यं पन वुत्तं "समाधिभावनाय को आनिसंसो" ति, तत्थ दिट्ठधम्मसुखविहारादिपञ्चविधो समाधिभावनाय आनिसंसो। तथा हि ये अरहन्तो खीणासवा समापज्जित्वा एकग्गचित्ता 'सुखं दिवसं विहरिस्सामा" ति समाधि भावेन्ति, तेसं अप्पनासमाधिभावना दिट्ठधम्मसुखविहारानिसंसा होति। तेनाह भगवा-"न खो पनेते, चुन्द, अरियस्स विनये सल्लेखा वुच्चन्ति। दिट्ठधम्मसुखविहारा एते अरियस्स विनये वुच्चन्ती" (म० नि० १/६०) ति। (१) __२९. सेक्खपुथुज्जनानं समापत्तितो वुट्ठाय 'समाहितेन चित्तेन विपस्सिस्सामा' ति भावयतं विपस्सनाय पदट्ठानत्ता अप्पनासमाधिभावना पि सम्बाधे ओकासाधिगमनयेन उपचारसमाधिभावना पि विपस्सनानिसंसा होति। तेनाह भगवा-"समाधि, भिक्खवे, भावेथ। समाहितो, भिक्खवे, भिक्खु यथाभूतं पजानाती (सं० नि० २/७५९)" ति। (२) यहाँ यह समाधि दो प्रकार की अभिप्रेत है-उपचार समाधि एवं अर्पणा समाधि। इनमें दश कर्मस्थानों में एवं अर्पणा के पूर्ववर्ती चित्तों में (पायी जाने वाली) एकाग्रता उपचार समाधि हैं। शेष कर्मस्थानों में चित्त की एकाग्रता अर्पणा समाधि है। दोनों ही प्रकार की वह समाधि उन कर्मस्थानों की भावना करने पर भावित होती हैं। अतएव (ग्रन्थकार द्वारा) कहा गया है"कैसे भावना करनी चाहिये-मेरे इस कथन की सब प्रकार से व्याख्या पूर्ण हुई।" . समाधि का माहात्म्य (आनुशंस्य) २८. जो यह कहा गया है-समाधि भावना का क्या माहात्म्य है?" (उसका उत्तर है-) समाधि भावना का माहात्म्य 'दृष्टधर्मसुखविहार' आदि पञ्चविध है। दृष्टधर्मसुखविहार-माहात्म्य-जो अर्हत्, क्षीणास्त्रव, समापत्तिलाभी होकर, एकाग्रचित्त से “दिनभर सुख से विहार करूँगा' ऐसा सोचकर समाधि की भावना करते हैं, उनकी अर्पणा समाधिभावना दृष्टधर्मसुख-विहार-माहात्म्य वाली होती है। अत: भगवान् ने कहा है-"चुन्द, आर्यविनय में ये सल्लेख (तप) नहीं कहे जाते; ये आर्यविनय में दृष्टधर्मसुखविहार कहे जाते हैं।" (म० नि० १/६०)। (१) २९. विपश्यना-माहात्म्य-जब शैक्ष्य एवं पृथग्जन समापत्ति (ध्यान) से उठकर, यह सोचकर भावना करते हैं कि 'समाहित चित्त से विपश्यना करूँगा' तब विपश्यना का आसन्न कारण होने से अर्पणा समाधि भावना भी, एवं 'भीड़-भाड़ में खुले स्थान की प्राप्ति' इस नय के अनुसार उपचार समाधि-भावना भी विपश्यना (रूप) माहात्म्य वाली होती है। अतः भगवान् ने कहा १. मया ति सेसो।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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