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________________ समाधिनिद्देसो २५९ जनकवसेन। इतरेसं तिसन्ततिकानं निस्सय-अस्थि-अविगतपच्चयवसेनेव, न परिपाचनवसेन न जनकवसेन। वायोधातु पेत्थ इतरासं तिण्णं सहजातादिवसेन चेव वित्थम्भनवसेन च पच्चयो होति, न जनकवसेन। इतरेसं तिसन्ततिकानं निस्सय-अस्थि-अविगतपच्चयवसेनेव, न वित्थम्भनवसेन न जनकवसेन। चित्त-आहार-उतुसमुट्ठान-पथवीधातुआदीसु पि एसेव नयो। (१३) २३. एवं सहजातादिपच्चयवसप्पंवत्तासु च पनेतासु धातूसु एकं पटिच्च तिस्सो चतुधा तिस्सो पटिच्च एका च। द्वे धातुयो पटिच्च द्वे छद्धा सम्पवत्तन्ति । पथवीआदीसु हि एकेकं पटिच्च इतरा तिस्सो तिस्सो ति एवं एकं पटिच्च तिस्सो चतुधा सम्पवत्तन्ति । तथा पथवीधातुआदीसु एकेका इतरा तिस्सो पटिच्चा ति एवं तिस्सो पटिच्च एका चतुधा सम्पवत्तति। पुरिमा पन द्वे पटिच्च पच्छिमा, पच्छिमा च द्वे पटिच्च पुरिमा, पठमततिया पटिच्च दुतियचतुत्था, दुतियचतुत्था पटिच्च पठमततिया, पठमचतुत्था पटिच्च दुतियततिया, दुतियततिया पटिच्च पठमचतुत्था ति एवं द्वे धातुयो पटिच्च द्वे छधा सम्पवत्तन्ति। २४. तासु पथवीधातु अभिक्कम्म-पटिक्कम्मादिकाले उप्पीळनस्स पच्चयो होति, सा व आपोधातुया अनुगता पतिट्ठापनस्स। पथवीधातुया पन अनुगता आपोधातु अवक्खेपनस्स। वायोधातुया अनुगता तेजोधातु उद्धरणस्स। तेजोधातुया अनुगता वायोधातु अतिहरण-वीतिहरणानं पच्चयो होती ति एवं पच्चयविभागतो मनसिकातब्बा। में एवं परिपाचन के रूप में प्रत्यय होती है, जनक के रूप में नहीं। अन्य तीन सन्ततियों की केवल निश्रय, अस्ति, अविगत प्रत्यय के रूप में, न परिपाचन और न ही जनक के रूप में। वायुधातु भी अन्य तीनों की सहजात आदि के रूप में एवं विष्कम्भन के रूप में प्रत्यय होती है, जनक के रूप में नहीं। अन्य तीन सन्ततियों की केवल निश्रय, अस्ति, अविगत प्रत्यय के रूप में ही, न विष्कम्भन के रूप में, न जनक के रूप में। चित्त, आहार एवं ऋतु से उत्पन्न पृथ्वीधातु आदि के विषय में भी यही विधि हैं। (१३) २३. एवं, यों सहजात आदि प्रत्ययों के बल से प्रवृत्त इन धातुओं में एक के प्रत्यय से तीन (धातुएं) चार प्रकार से, तीन के प्रत्यय से एक, दो धातुओं के प्रत्यय से दो (धातुएं) छह प्रकार से प्रवृत्त होती हैं। पृथ्वी आदि में से प्रत्येक (धातु) के प्रत्यय से शेष तीन (उत्पन्न होती हैं)। यों एकएक के प्रत्यय से तीन चार प्रकार से उत्पन्न होती हैं। वैसे ही, पृथ्वीधातु आदि में से प्रत्येक अन्य तीन के प्रत्यय से (उत्पन्न होती हैं)। यों तीन के प्रत्यय से एक, चार प्रकार से प्रवृत्त होती है। पूर्व की दो के प्रत्यय से पश्चात् की दो के प्रत्यय से पूर्व की, पहली तीसरी के प्रत्यय से दूसरी चौथी, दूसरी चौथी के प्रत्यय से पहली तीसरी, पहली चौथी के प्रत्यय से दूसरी तीसरी, दूसरी तीसरी के प्रत्यय से पहली चौथी-यों दो धातुओं के प्रत्यय से दो (धातुएँ) छह प्रकार से प्रवृत्त होती हैं। २४. उनमें पृथ्वीधातु आगे जाने एवं पीछे लौटने के समय उत्पीड़न (=भार, दबाव) का
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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