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________________ विसुद्धिमग्गो पच्चयविभागतो तिं। धातूनं हि कम्मं, चित्तं, आहारो, उतू ति चत्तारो पच्चया। तत्थ कम्मसमुट्ठानानं कम्मेव पच्चयो होति, न चित्तादयो । चित्तादिसमुट्ठानानं पि चित्तादयो व पच्चया होन्ति, न इतरे । कम्मसमुद्वानानं च कम्मं जनकपच्चयो होति, सेसानं परियायतो उपनिस्सयपच्चयो होति । चित्तसमुट्ठानानं चित्तं जनकपच्चयो होति, सेसानं पच्छाजातपच्चयो अस्थिपच्चयो अविगतपच्चयो च। आहारसमुट्ठानानं आहारो जनकपच्चयों होति, सेसानं आहारपच्चयो अत्थिपच्चयो अविगतपच्चयो च । उतुसमुट्ठानानं उतु जनकपच्च॑यो होति, सेसानं अत्थपच्चयो अविगतपच्चयो च। कम्मसमुट्ठानं महाभूतं कम्मसमुट्ठानानं पि महाभूतानं पच्चयो होति, चित्तादिसमुट्ठानानं पि । तथा चित्तसमुट्ठानं, आहारसमुट्ठानं । उतुसमुट्ठानं महाभूतं उतुसमुट्ठानानं पि महाभूतानं पच्चयो होति, कम्मादिसमुट्ठानानं पि । २५८ तत्थ कम्मसमुट्ठाना पथवीधातु कम्मसमुट्ठानानं इतरासं सहजात अञ्ञमञ्ञ निस्सयअस्थि - अविगतवसेन चेव पतिट्ठावसेन च पच्चयो होति, न जनकवसेन । इतरेसं तिसन्तति- . महाभूतानं निस्सय-अत्थि - अविगतवसेन पच्चयो होति, न पतिट्ठावसेन । आपोधातु चेत्थ इतरासं तिण्णं सहजातादिवसेन चेव आबन्धनवसेन च पच्चयो होति, न जनकवसेन । इतरेसं तिसन्ततिकानं निस्सय-अत्थि-अविगतपच्चयवसेनेव न आबन्धनवसेन न जनक्रवसेन । तेजोधातु पेत्थ इतरासं तिण्णं सहजातादिवसेन चेव परिपाचनवसेन च पच्चयो होति, न (१३) प्रत्यय-विभाग से - धातुओं के चार प्रत्यय हैं - कर्म, चित्त, आहार और ऋतु । इनमें, जो कर्म से उत्पन्न हैं, उनका प्रत्यय केवल कर्म ही होता है, चित्त आदि नहीं। जो चित्त आदि से उत्पन्न हैं, उनके प्रत्यय भी केवल चित्त आदि ही होते हैं, दूसरे नहीं। जो कर्म से उत्पन्न हैं, कर्म उनका जनकप्रत्यय' होता है, अन्यों का परोक्ष रूप से उपनिश्रयप्रत्यय होता है। जो चित्त से उत्पन्न है, अन्यों का परोक्ष रूप से उपनिश्रयप्रत्यय होता है। जो चित्त से उत्पन्न हैं, चित्त उनका जनकप्रत्यय होता है, शेष का पश्चात् जात (पच्छाजात) प्रत्यय, अस्तिप्रत्यय एवं अविगतप्रत्यय । जो आहार से उत्पन्न हैं, आहार उनका जनकप्रत्यय होता है, शेष का आहारप्रत्यय, अस्तिप्रत्यय एवं अविगतप्रत्यय। जो ऋतु से उत्पन्न हैं, ऋतु उनकी जनकप्रत्यय होती है, अन्यों की अस्तिप्रत्यय एवं अविगतप्रत्यय । कर्म से उत्पन्न महाभूत कर्म से उत्पन्न महाभूतों का भी प्रत्यय होता है, चित्त आदि से उत्पन्नों का भी। वैसे ही चित्त से उत्पन्न के बारे में भी जानना चाहिये । ऋतु से उत्पन्न महाभूत ऋतु से उत्पन्न महाभूतों का भी प्रत्यय होता है, कर्म आदि से उत्पन्नों का भी । इनमें कर्मोत्पन्न पृथ्वीधातु अन्य कर्मोत्पन्न ( धातुओं) की सहजात, अन्योन्य, निश्रय, अस्ति, अविगत के रूप में एवं आधार के रूप में प्रत्यय होती है, न कि जनक के रूप में। अन्य तीन सन्ततियों (चित्त, ऋतु, आहार) से उत्पन्न महाभूतों की निश्रय, अस्ति, अविगत प्रत्यय होती है, आधार -प्रत्यय नहीं। अब्धातु तीनों (अन्य धातुओं) की सहजात एवं बन्धन के रूप में प्रत्यय होती है, जनक के रूप में नहीं । अन्य तीन सन्ततियों की निश्रय, अस्ति, अविगत प्रत्यय के रूप में ही, न बन्धन के रूप में एवं न जनक के रूप में। तेजोधातु भी अन्य तीनों की सहजात के रूप १, १. जनक, उपनिश्रय आदि चौबीस प्रत्ययों के लिये द्र० - इसी ग्रन्थ का सत्रहवाँ परिच्छेद ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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