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________________ समाधिनिस २५७ निस्सया होन्ति, सइरियापथा चतुसमुट्ठाना। बाहिरा वृत्तविपरीतप्पकारा ति एवं अज्झत्तिकबाहिरविसेसतो मनसिकाब्बा । (९) सङ्ग्रहतो ति । कम्मसमुट्ठाना पथवीधातु कम्मसमुट्ठानाहि इतराहि एक सङ्गहा होति समुट्ठाननानत्ताभावतो, तथा चित्तादिसमुट्ठाना चित्तादिसमुट्ठानाही ति एवं सङ्गहतो मनसिका तब्बा। (१०) पच्चयतोति । पथवीधातु आपोसङ्गहिता तेजोअनुपालिता वायोवित्थम्भिता तिण्णं महाभूतानं पतिट्ठा हुत्वा पच्चयो होति । आपोधातु पथवीपतिट्ठिता तेजोअनुपालिता वायोवित्थम्भिता तिणं महाभूतानं आबन्धनं हुत्वा पच्चयो होति । तेजोधातु पथवीपतिट्ठिता आपोसङ्गहिता वायोवित्थम्भिता तिण्णं महाभूतानं परिपाचनं हुत्वा पच्चयो होति । वायोधातु पथवीपतिट्ठिता आपोसङ्गहिता तेजोपरिपाचिता तिण्णं महाभूतानं वित्थम्भनं हुत्वा पच्चयो होती ति एवं पच्चयतो मनसिकातब्बा । (११) । असमन्नाहारतो ति। पथवीधातु चेत्थ "अहं पथवीधातू" ति वा, 'तिण्णं महाभूतानं पतिट्ठा हुत्वा पच्चयो होमी' ति वा न जानाति, इतरानि पि तीणि " अम्हाकं पथवीधातु पतिट्ठा हुत्वा पच्चयो होती " ति न जानन्ति । एस नयो सब्बत्था ति एवं असमन्नाहारतो मनसिकातब्बा । (१२). (९) आन्तरिक एवं बाह्य के भेद से- आन्तरिक धातुएँ विज्ञान की वस्तुओं (= विषयों), विज्ञप्तियों एवं इन्द्रियों (स्त्रीन्द्रिय, पुरुषेन्द्रिय, जीवितेन्द्रिय) का आधार होती हैं, वे ईर्य्यापथ के साथ सम्बद्ध होती हैं एवं चार (कर्म, चित्त, ऋतु, आहार) से उत्पन्न होने वाली हैं। बाह्य (धातुएँ) उक्त से विपरीत प्रकार की होती हैं। यों, आन्तरिक एवं बाह्य के भेद के अनुसार मनस्कार करना चाहिये । (१०) संग्रह से - कर्म से उत्पन्न पृथ्वीधातु, कर्म से उत्पन्न अन्य (धातुओं) के साथ संगृहीत होती हैं; क्योंकि उनमें उत्पत्तिगत भेद नहीं होता। वैसे ही, चित्त से उत्पन्न (धातु) चित्त से उत्पन्न (धातुओं) के साथ। यों संग्रह के अनुसार मनस्कार करना चाहिये। (११) प्रत्यय से - पृथ्वीधातु, जो अप् द्वारा संगृहीत, तेज द्वारा पालित, वायु द्वारा प्रतिष्ठित है, तीनों महाभूतों (पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य तीन धातुओं) के आधार के रूप में प्रत्यय होती है। अब्धातु, जो पृथ्वी पर प्रतिष्ठित, तेज द्वारा पालित, वायु द्वारा स्थिर की गयी है, तीनों महाभूतों के बन्धन के रूप में प्रत्यय होती है। तेजोधातु, जो पृथ्वी पर प्रतिष्ठित, अप् द्वारा संगृहीत, वायु द्वारा रोकी गयी है, तीनों महाभूतों के परिपाचन के रूप में प्रत्यय होती है। वायुधातु जो पृथ्वी पर प्रतिष्ठित, अप् द्वारा संगृहीत, तेज द्वारा पालित हैं, तीनों महाभूतों के विष्कम्भन के रूप में प्रत्यय होती है । यों, प्रत्यय के अनुसार मनस्कार करना चाहिये । (१२) चेतना के अभाव से - पृथ्वीधातु यह नहीं जानती कि 'मैं पृथ्वी धातु हूँ' या 'तीनों महाभूतों के आधार के रूप में प्रत्यय हूँ।' अवशिष्ट तीन भी यह नहीं जानतीं - 'पृथ्वीधातु हमारे आधार के रूप में प्रत्यय है।' ऐसा ही सभी धातुओं के बारे में है। यों, चेतना के अभाव के अनुसार मनस्कार करना चाहिये ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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