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________________ २५२ विसुद्धिमग्गो दस्सेति, समिछुति, सम्पसारेति, हत्थपादं लाळेति । एवमेतं इतिथपुरिसादिभावेन बालजनवञ्चन मायारूपसदिसं धातुयन्तं पवत्तती ति। एवं चुण्णतो मनसिकातब्बा। (३) लक्खणादितो ति। पथवीधातु किंलक्खणा? किंरसा? किं पच्चुपट्टाना? ति एवं चतस्सो पि धातुयो आवजेत्वा पथवीधातु कक्खळत्तलक्खणा, पतिट्ठानरसा, सम्पटिच्छनपच्चुपट्ठाना। आपोधातु पग्घरणलक्खणा, ब्रूहनरसा, सङ्गहपच्चुपट्ठाना। तेजोधातु उण्हत्तलक्खणा, परिपाचनरसा, मद्दवानुप्पदानपच्चुपट्ठाना। वायोधातु वित्थम्भमलक्खणा समुदीरणरसा, अभिनीहारपच्चुपट्टाना ति। एवं लक्खणादितो मनसिकातब्बो। (४) । समुट्ठानतो ति। ये इमे पथवीधातुआदीनं वित्थारतो दस्सनवसेन केसादयो द्वाचत्तालीस कोट्ठासा दस्सिता, तेसु उदरियं करीसं पुब्बो मुत्तं-ति इमे चत्तारो कोट्ठासा उतुसमुट्ठाना व। अस्सु सेदो खेळो सिङ्घाणिका–ति इमे चत्तारो उतुचित्तसमुट्ठाना। असितादिपरिपाचको तेजोकम्मसमुट्ठानो व। अस्सासपस्सासा चित्तसमुट्ठाना व। अवसेसा सब्बे पि चतुसमुट्ठाना ति। एवं समुट्ठानतो मनसिकातब्बा। (५) नानत्तेकत्ततो ति। सब्बासं पि धातूनं सलक्खणादितो नानत्तं। अञ्जानेव हि पथवीधातुया लक्खणरसपच्चुपट्टानानि, अञानि आपोधातुआदीनं। एवं लक्खणादिवसेन पन कम्मसमुट्ठानादिवसेन च नानत्तभूतानं पि एतासं रूप-महाभूत-धातु-धम्म-अनिच्चादिवसेन एकत्तं होति। वायुधातु द्वारा प्रेरित होकर चलना, खड़ा होना, बैठना, सोना आदि ई-पथों में (प्राणी) समर्थ होता है, (अङ्गों को) मोड़ता है, पसारता है, हाथ पैर को मोड़ता पसारता है। यों यह (वायुधातु) स्त्री-पुरुष आदि के रूप में मूढजनों को ठगने वाले मायावी रूप के समान, इस धातु-यन्त्र (शरीर) को चलाती है। यों खण्डशः मनस्कार करना चाहिये। (४) लक्षण आदि से-पृथ्वीधातु का क्या लक्षण है? रस (कार्य) क्या है ? प्रत्युपस्थान (जानने का आकार, पहचान) क्या है? यों चारों धातुओं पर विचार कर, लक्षण आदि के अनुसार यों मनस्कार करना चाहिये-'पृथ्वीधातु का लक्षण कठोरता है, इसका रस प्रतिष्ठा (आधार) देना है, इसका प्रत्युपस्थान स्वीकार करना है। अब्धातु का लक्षण प्रवाह है, इसका रस बढ़ाना है (जैसे अङ्कर आदि को)। इसका प्रत्युपस्थान संग्रह है। तेजोधातु का लक्षण उष्णता, रसपरिपाचन, प्रत्युपस्थान निरन्तर मृदुता उत्पन्न करना है। वायुधातु का लक्षण विष्कम्भन, रससञ्चरण (समुदीरण), प्रत्युपस्थान एक से दूसरे स्थान में ले जाना है। यों, लक्षण आदि के अनुसार मनस्कार करना चाहिये। (४) (५) उत्पत्ति से-पृथ्वीधातु आदि के विस्तृत वर्णन के उद्देश्य से ये जो केश आदि बयालीस भाग बतलाये गये हैं, उनमें उदरस्थ पदार्थ, मल, पीब एवं मूत्र-ये चार भाग ऋतु (तापक्रम) से उत्पन्न होते हैं। अश्रु, स्वेद, थूक, पोंटा-ये चार ऋतु एवं चित्त से ही उत्पन्न होते हैं। खाये पीये को पचाने वाला तेज कर्म से ही उत्पन्न होता है। आश्वास-प्रश्वास चित्त से ही उत्पा होते हैं। शेष सभी चारों से उत्पन्न हैं। यों, उत्पत्ति के अनुसार मनस्कार करना चाहिये। (६) विभिन्नता एवं एकता से-सभी धातुएं अपने लक्षण आदि के अनुसार परस्पर
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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