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________________ समाधिनिद्देसो २५१ चुण्णतो ति। इमस्मि हि सरीरे मज्झिमेन पमाणेन परिग्गव्हमाना परमाणुभेदसक्षुण्णा सुखुमरजभूता पथवीधातु दोणमत्ता सिया। सा ततो उपडप्पमाणाय आपोधातुया सङ्गहिता, तेजोधातुया अनुपालिता, वायोधातुया वित्थम्भिता न विकिरति, न विद्धंसति, अविकिरियमाना अविद्धंसियमाना अनेकविधं इत्थिपुरिसलिङ्गादिभावविकप्पं उपगच्छति, अणु-थूल-दीघरस्स-थिर-कथिनादिभावं च पकासेति। यूसगता आबन्धनाकारभूता पनेत्थ आपोधातु पथवीपतिट्ठिता तेजानुपालिता वायोवित्थम्भिता न पग्घरति न परिस्सवति, अपग्घरमाना अपरिस्सवमाना पीणितपीणितभावं दस्सेति। असितपीतादिपाचका चेत्थ उसुमाकारभूता उण्हत्तलक्खणा तेजोधातु पथवीपतिट्ठिता आपोसङ्गहिता वायोवित्थम्भिता इमं कायं परिपाचेति, वण्णसम्पत्तिं चस्स आवहति, ताय च पन परिपाचितो अयं कायो न पूतिभावं दस्सेति। ____ अङ्गमङ्गानुसटा चेत्थ समुदीरणवित्थम्भनलक्खणा वायोधातु पथवीपतिट्ठिता आपोसङ्गहिता तेजानुपालिता इमं कायं वित्थम्भेति । ताय च पन वित्थम्भितो अयंकायो न परिपतति, उजुकं सण्ठाति। अपराय वायोधातुया समब्भाहतो गमनट्ठाननिसज्जासयनइरियापथेसु विज्ञत्तिं समूह भी होता है। किन्तु (कठोरता या बन्धन लक्षण की प्रधानता के आधार पर) 'पृथ्वीधातु' या 'अब्धातु' की संज्ञा प्राप्त करता है। यों कलाप के अनुसार मनस्कार करना चाहिये। (३) खण्ड (चूर्ण) से-इसी शरीर में सूक्ष्म धूलिकणों के रूप में, परमाणुओं के रूप में चूर्ण-विचूर्ण पृथ्वीधातु को लिया जाय, तो वह औसतन एक द्रोण मात्र (लगभग २० कि०) परिमाण की होगी। उससे आधे परिमाण वाली अब्धातु द्वारा एकीकृत होकर, वह (पृथ्वी धातु) तेजो धातु द्वारा पालित, वायु द्वारा स्थिर हुई२ न तो विखरती है, न नष्ट होती है। विना बिखरे, विना नष्ट हुए, वह अनेक प्रकार के स्त्रीत्व-पुरुषत्व आदि भावों के विकल्पों को प्राप्त होती है, तथा सूक्ष्म-स्थूल, दीर्घ-हस्व, ठोस, दृढ़ आदि अवस्थाओं को प्रकट करती है। तरल, बन्धन लक्षण वाली अब्धातु पृथ्वी पर प्रतिष्ठित, तेज द्वारा पालित, वायु द्वारा स्तब्ध हुई होने से न तो टपकती है, न बहती है। न टपकते हुए, न बहते हुए...। खाये-पिये को पचाने वाली तेजाधातु जिसका लक्षण उष्णता है, पृथ्वी पर प्रतिष्ठित, अप् द्वारा एकीकृत, वायु द्वारा स्थिर की हुई, इस काया का परिपाक करती है, वर्ण-सम्पत्ति (कान्ति) ले आती है। उसके द्वारा परिपाक होते रहने से ही इस शरीर में सड़न उत्पन्न नहीं हो पाती। ___ अङ्ग-प्रत्यङ्ग में फैली हुई (अनुसृत) वायुधातु, जो संसरण एवं विष्कम्भन लक्षण वाली है पृथ्वी पर प्रतिष्ठित, अप् द्वारा एकीकृत, तेज द्वारा पालित इस शरीर को स्थिर रखती है। उससे स्थिर हुआ होने से यह शरीर गिरता नहीं है, सीधा खड़ा (रह सकता) है। अन्य (इसके अतिरिक्त) १. तेजोधातु शरीर को सड़न से रक्षा करती है, अतएव उसे पालन करने वाली कहा गया है। २. वायुधातु शरीर को यथास्थित रखती है, अन्यथा अप्-धातु के प्रभाव से उसके चूने या बहने का भय उपस्थित हो जाता।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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