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________________ समाधिनिद्देसो ति; एवमेव न थूलन्हारु जानाति – 'मया वक्कं उपनिबद्धं' ति, न पि वक्कं जानाति——अहं थूलन्हारुना उपनिबद्धं' ति । अञ्ञञ्ञ आभोपच्चवेक्खणरहिता एते धम्मा । इति वक्कं नाम इर्मास्मि सरीरे पाटियेक्को कोट्टासो अचेतनो अब्याकतो सुञो निस्सत्तो थद्धो पथवीधातू ति । हृदयं सरीरब्भन्तरे ऊरट्टिपञ्जरमज्झं निस्साय ठितं । तत्थ यथा जिण्णसन्दमानिकपञ्जरं निस्साय ठपिताय मंसपेसिया न जिण्णसन्दमानिकपञ्जरब्भन्तरं जानाति - 'मं निस्साय मंसपेसि ठपिता' ति, न पि मंसपेसि जानाति - ' अहं जिण्णसन्दमानिकपञ्जरं निस्साय ठिता' ति; एवमेव न उरट्टिपञ्जरब्भन्तरं जानाति - 'मं निस्साय हृदयं ठितं' ति, न पि हृदयं जानाति –'अहं उरट्टिपञ्जरं निस्साय ठितं' ति । अञ्ञमञ्चं आभोगपच्चवेक्खणरहिता एते धम्मा । इति हदयं नाम इमस्मि सरीरे पाटियेक्को कोट्टासो अचेतनो अब्याकतो सुञ निस्सत्तो द्धो पथवीधातू ति । २३९ यकनं अन्तोसरीरे द्विनं थनानमभन्तरे दक्खिणपस्स निस्साय ठितं । तत्थ यथा उक्खलिकपालपरसम्हि लग्गे यमकमंसपिण्डे' न उक्खलिकपालपस्सं जानाति - 'मयि . यमकमंसपिण्डो लग्गो' ति, न पि यमकमंसपिण्डो जानाति - ' अहं उक्खलिकपालपस्से लग्गो' ति; एवमेव न थनानमब्भन्तरे दक्खिणपस्सं जानाति - 'मं निस्साय यकनं ठितं' ति, नपि यकनं जानाति - ' अहं थनानं अब्भन्तरे दक्खिणपस्सं निस्साय ठितं' ति । अञ्ञमञं आभोगपच्चवेक्खणरहिता एते धम्मा । इति यकनं नाम इमस्मि सरीरे पाटियेक्को कोट्ठासो अचेतनो अब्याकतो सुञ्ञो निस्सत्तो थद्धो पथवीधातू ति । है । जैसे यदि दो आम के फल (एक) वृन्त (डण्डी) से बँधे हों, तो वृन्त नहीं जानता कि मेरे द्वारा आम के फल का जोड़ा बँधा हुआ है, न आम के फल का जोड़ा जानता है कि मैं वृन्त से बँधा हुआ हूँ; वैसे ही न तो स्थूल स्नायु जानती है कि मुझसे वृक्क उपनिबद्ध है, न ही वृक्क जानता है कि मैं स्थूल स्नायु से उपनिबद्ध हूँ । ये धर्म... पूर्ववत्... । यों वृक्क पृथ्वी धातु है। हृदय - शरीर के भीतर, छाती के अस्थिपञ्जर के मध्य, ( उसके) सहारे स्थित है। जैसे कि यदि किसी जीर्ण-शीर्ण गाड़ी के ढाँचे के सहारे मांस का टुकड़ा रखा हो, तो जीर्ण-शीर्ण गाड़ी के ढाँचे का भीतरी भाग यह नहीं जानता कि मेरे सहारे मांसपेशी रखी है, न ही मांसपेशी जानती है कि मैं जीर्ण-शीर्ण गाड़ी के ढाँचे के सहारे स्थित हूँ; वैसे ही छाती के अस्थिपञ्जर का आन्तरिक भाग नहीं जानता कि सहारे हृदय स्थित है, न ही हृदय जानता है कि मैं छाती के अस्थिपञ्जर के सहारे स्थित हूँ। ये धर्म परस्पर ... पूर्ववत्... । यों हृदय पृथ्वी - धातु है । यकृत् - यकृत् शरीर के भीतर दोनों स्तनों के बीच में दाहिनी ओर स्थित है। जैसे खाना पकाने के पात्र के एक ओर यदि मांस पिण्ड का जोड़ा चिपका हुआ हो, तो न तो पात्र जानता है - 'मुझमें मांस - पिण्ड का जोड़ा चिपका हुआ है, न मांस-पिण्ड का जोड़ा जानता है- " मैं खाना पकाने के पात्र में चिपका हुआ हूँ; वैसे ही न तो स्तनों के बीच का दाहिना पार्श्व जानता है - 'मेरे सहारे यकृत स्थित है', न ही यकृत जानता है- 'मैं स्तनों के बीच दाहिनी और स्थित हूँ।' ये धर्म परस्पर... । पूर्ववत्....। यों, यकृत पृथ्वीधातु है । १. यमकमंसपिण्डेति । मंसपिण्डयुगळे ।
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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