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________________ २१४ विसुद्धिमग्गो नत्थि नेसं पासादतलभावेन विसेसो। पञ्चकामगुणसमिद्धविसेसेन पन हेट्ठिमतो हेट्ठिमतो उपरिमं उपरिमं पणीततरं होति। (१) ___ यथा च एकाय, इत्थिया कन्तित-थूल-सह-सण्हतर-सण्हतमसुत्तानं चतुपलतिपल-द्विपल-एकपलसाटिका अस्सु, आयामेन च वित्थारेन च समप्पमाणा। तत्थ किञ्चापि ता साटिका चतस्सो पि आयामतो च वित्थारतो च समप्पाणा, नत्थि तासं पमाणतो विसेसो। सुखसम्फस्स-सुखुमभाव-महग्घभावेहि पन पुस्मिाय पुरिमाय पच्छिमा पच्छिमा पणीततरा होन्ति । एवमेव किञ्चापि चतूसु एतासु उपेक्खा चित्तेकग्गता ति एतानि द्वे येव अङ्गानि होन्ति, अथ खो भावनाविसेसेन तेसं अङ्गानि पणीत-पणीततरभावेन सुप्पणीततरा होन्ति पच्छिमा पच्छिमा इधा ति वेदितब्बा। (२) ३६. एवं अनुपुब्बेन पणीतपणीता चेता असुचिम्हि मण्डपे लग्गो एको तं निस्सतो परो। अञ्जो बहि अनिस्साय तं तं निस्साय चापरो॥ ठितो चतूहि एतेहि पुरिसेहि यथाक्कमं। समानताय ञातब्बा चतस्सो पि विभाविना॥ तत्रायमत्थयोजना-असुचिम्हि किर देसे एको मण्डपो, अथेको पुरिसो आगन्त्वा तं असुचिं जिगुच्छमानो तं मण्डपं हत्थेहि आलम्बित्वा तत्थ लग्गो लग्गितो विय अट्ठासि। हों, दूसरे में उससे उत्कृष्टतर, तीसरे में उससे उत्कृष्टतर, चौथे में उत्कृष्टतम। यहाँ, यद्यपि वे चारों प्रासादतल ही हैं, किन्तु प्रासादतल के रूप में उनमें (परस्पर) किसी प्रकार की (आपेक्षिक) विशेषता नहीं है। पाँच कामगुणों की समृद्धि की विशेषता से ही निचले-निचले की अपेक्षा ऊपर-ऊपर के उत्कृष्टतर होते हैं। (१) एवं जैसे किसी स्त्री के द्वारा निर्मित मोटे, पतले, उससे भी पतले, उससे भी पतले सूतों से चौहरी, तिहरी, दोहरी एवं इकहरी मोटाई के कपड़े हों, जिनकी लम्बाई एवं चौड़ाई एक समान हो। वहाँ यद्यपि ये चारों ही वस्त्र लम्बाई चौड़ाई में समान परिणाम के हैं, उनमें परिमाणत: कोई विशेषता नहीं है, किन्तु कोमल स्पर्श, पतलापन, बहुमूल्य होने आदि के आधार पर वे उत्तरोत्तर उत्कृष्ट होते हैं। वैसे ही यद्यपि इन चारों (आरूप्यों) में उपेक्षा एवं चित्तैकाग्रता-ये दो ही अङ्ग होते हैं, तथापि यहाँ भावना की विशेषता से उनके अङ्ग उत्तरोत्तर उत्कृष्ट होते हैं, यह जानना चाहिये। (२) ३६. तथा इस प्रकार क्रमश: उत्कृष्टोत्कृष्ट ये समापत्तियाँ यों समझी जानी चाहिये अशुचि (स्थान) पर (किसी) मण्डप से सटकर खड़ा हुआ एक (पुरुष), उसका सहारा लिये हुए दूसरा, उनसे हटकर बाहर खड़ा हुआ तीसरा, एवं उस (तीसरे) के सहारे से खड़ा हुआ चौथा-इन चारों पुरुषों से क्रमशः चारों (समापत्तियों) की समानता बुद्धिमानों को समझनी चाहिये॥ इस कथन का स्पष्टीकरण इस प्रकार है किसी गन्दे स्थान पर एक मण्डप (तम्बू) तना था। कोई पुरुष आया और उस गन्दगी से जुगुप्सा न करते हुए उस मण्डप का हाथ से सहारा लेकर उससे सटकर खड़ा हो गया। तब
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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