SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आरुप्पनिद्देसो २१५ अथापरो आगन्त्वा तं मण्डपे लग्गं पुरिसं निस्सितो' । अथळो आगन्त्वा चिन्तेसि-"यो एस मण्डपलग्गो, यो च तं निस्सितो, उभो पेते दुट्ठिता, धुवो नेसं मण्डपपपाते पातो, हन्दाहं बहि येव तिट्रामी" ति। सो तं निस्सितं अनिस्साय बहि येव अट्ठासि। अथापरो आगन्त्वा मण्डपलग्गस्स च तन्निस्सितस्स च अखेमभावं चिन्तेत्वा बहिट्टितं च "सुट्टितो" ति मन्त्वा तं निस्साय अट्ठासि। तत्थ असुचिम्हि देसे मण्डपो विय कसिणुग्घाटिमाकासं दट्टब्बं । असुचिजिगुच्छाय मण्डपलग्गो पुरिसो विय रूपनिमित्तजिगुच्छाय आकासारम्मणं आकासानञ्चायतनं । मण्डपलग्गं पुरिसं निस्सितो विय आकासारम्मणं आकासानञ्चायतनं आरब्भ पवत्तं विज्ञाणञ्चायतनं। तेसं द्विनं पि अखेमभावं चिन्तेत्वा अनिस्साय तं मण्डपलग्गं बहिट्ठितो विय आकासानञ्चायतनं आरम्मणं अकत्वा तदभावारम्मणं आकिञ्चायतनं। मण्डपलग्गस्स तन्निस्सितस्स च अखेमतं चिन्तेत्वा बहिट्टितं च "सुट्टितो" ति मन्त्वा तं निस्साय ठितो विय विज्ञाणाभावसङ्घाते बहिपदेसे ठितं आकिञ्चायतनं आरब्भ पवत्तं नेवसञ्जानासचायतनं दट्ठब्बं । ३७. एवं पवत्तमानं च आरम्मणं करोतेव अज्ञाभावेन तं इदं। दिट्ठदोसं पि राजानं वुत्तिहेतु जनो यथा ॥ कोई दूसरा पुरुष भी आकर उस मण्डप से सटे हुए पुरुष से टिककर खड़ा हो गया। तब किसी तीसरे ने आकर सोचा-"यह जो मण्डप से सटा हुआ है और यह जो उस पर टिका है, ये दोनों ही गलत जगह पर खड़े हैं। यदि मण्डप गिर पड़ा तो इनका दबना निश्चित है। अच्छा हो मैं बाहर ही रहूँ"-और वह उस टिके हुए (दूसरे पुरुष) का सहारा न लेकर बाहर ही खड़ा रहा। तभी कोई चौथा (पुरुष) आया और मण्डप से सटे हुए को और उस पर टिके हुए को असुरक्षित समझ कर तथा जो बाहर खड़ा था उसे उचित जगह पर खड़ा जानकर उसका सहारा लेकर खड़ा हो गया। वहाँ, गन्दे स्थान पर निर्मित मण्डप के समान उस आकाश को समझना चाहिये जिसमें से कसिण मिटा दिया गया है। गन्दगी के प्रति जुगुप्सा (घृणा) के कारण मण्डप से सटे पुरुष के समान, रूपनिमित्त के प्रति जुगुप्सा के कारण आकाश को आलम्बन बनाने वाले आकाशानन्त्यायतन को (जानना चाहिये)। मण्डप से सटे पुरुष का सहारा लेकर खड़े होने वाले के समान, आकाश को आलम्बन बनाने वाले आकाशानन्त्यायतन के प्रति प्रवृत्त विज्ञानानन्त्यायतन को... । उन दोनों को ही असुरक्षित मानकर मण्डप से सटे हुए का सहारा न लेकर, बाहर खड़े होने वाले के समान, आकाशानन्त्यायतन को आलम्बन न बनाकर उसके अभाव को आलम्बन बनाने वाले आकिञ्चन्यायतन को... । मण्डप से सटे और उस पर टिके दोनों को ही असुरक्षित समझकर तथा बाहर खड़े को ही "सही जगह पर खड़ा" मानकर, उसके सहारे टिकने वाले के समान, विज्ञानाभाव संज्ञक बाह्य प्रदेश में स्थित आकिञ्चन्यायतन के प्रति प्रवृत्त नैवसंज्ञानासंज्ञायतन को समझना चाहिये। ३७. एवं ऐसा होने पर-यह (नैवसंज्ञानासंज्ञायतन) अन्य (आलम्बन) का अभाव होने १. निस्सितो ति। निस्साय ठितो। 2-16
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy