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________________ ३३. आरुप्पनिद्देसो पकिण्णककथा असदिसरूपो नाथो आरुप्पं यं चतुब्बिधं आह । तं इति त्वा तस्मि पकिण्णककथा पि विज्ञेय्या || ३४. आरुप्पसमापत्तियो हि २१३ आरम्मणातिक्कमतो चतस्सो पि भवन्तिमा । अङ्गातिक्कममेतासं न इच्छन्ति विभाविनो ॥ एतासु हि रूपनिमित्तातिक्कमतो पठमा आकासातिक्कमतो दुतिया, आकासे पवत्तितविञ्ञाणातिक्कमतो ततिया, आकासे पवत्तितविञ्ञणस्स अपगमातिक्कमतो चतुत्थी ति सब्बथा आरम्मणातिक्कमतो चतस्सो पि भवन्तिमा आरुप्पसमापत्तियो ति वेदितब्बा । अङ्गातिक्कमं पन एतासं न इच्छन्ति पण्डिता । न हि रूपावचरसमापत्तीसु विय एतासु अङ्गातिक्कमो अत्थि । सब्बासु पि हि एतासु – उपेक्खा, चित्तेकग्गता ति द्वे एव झानङ्गानि होन्ति । ३५. एवं सन्ते पि सुप्पणीततरा होन्ति पच्छिमा पच्छिमा इध । उपमा तत्थ विय्या पासादतलसाटिका || यथा हि चतुभूमिकस्स पासादस्स हेट्ठिमतले दिब्बनच्चगीतवादितसुरभिगन्धमालाभोजनसयनच्छादनादिवसेन पणीता पञ्चकामगुणा पच्चुपट्ठिता अस्सु । दुतिये ततो पणीततरा, ततिये ततो पणीततरा, चतुत्थे सब्बपणीततरा । तत्थ किञ्चापि तानि चत्तारि पि पासादतलानेव, प्रकीर्णक ३३. अद्वितीय नाथ (भगवान् बुद्ध) ने जो चार प्रकार के आरूप्य बतलाये हैं, उन्हें इस प्रकार (पूर्वोक्तानुसार) जानकर, उनमें यह प्रकीर्णक-वर्णन भी ( समाविष्ट) जानना चाहिये ॥ ३४. क्योंकि - ये चारों (आरूप्य) आलम्बन के अतिक्रमण द्वारा होते हैं। बुद्धिमान् इनमें (ध्यान के) अङ्गों का अतिक्रमण नहीं मानते ॥ इनमें से, रूप-निमित्त के अतिक्रमण के प्रथम, आकाश के अतिक्रमण से द्वितीय, आकाश के विषय में प्रवर्तित विज्ञान के अतिक्रमण से तृतीय एवं आकाश में प्रवर्तित विज्ञान के लोप रूप अतिक्रमण से चतुर्थ-यों सर्वथा आलम्बन के अतिक्रमण से ही चारों आरूप्य समापत्तियाँ होती हैं - यह जानना चाहिये । बुद्धिमान् इनमें अङ्गों का अतिक्रमण नहीं मानते; क्योंकि रूपावचरसमापत्तियों के समान इनमें अङ्गों का अतिक्रमण नहीं होता । इन सभी में दो ही ध्यानाङ्ग होते हैं— उपेक्षा एवं चित्तैकाग्रता ।, ३५. ऐसा होने पर भी यहाँ (आरूप्य समापत्तियाँ) उत्तरोत्तर उत्कृष्टतर होती जाती हैं। इस प्रसङ्ग में प्रासादतल एवं वस्त्र की उपमा को (अर्थ स्पष्टीकरण में सहायक) समझना चाहिये ॥ जैसे चार तलों (मंजिलों) वाले प्रासाद के नीचे वाले तल में दिव्य नृत्य-गीत-वाद्य, सुरभिगन्धयुक्त माला, भोजन- शयन, वस्त्रादि (आच्छादन) के रूप में उत्कृष्ट पाँच कामगुण प्रत्युपस्थित
SR No.002429
Book TitleVisuddhimaggo Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year2002
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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