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________________ १. सीलनिद्देस ४३ विसमिस्सकं खेळं" ति । सा "न सक्का मुण्डकं वञ्चेतुं" ति उच्छ्रं दत्वा ओदनं पचित्वा घतगुळमच्छेहि सद्धिं सब्बं अदासी ति । एवं समीपं कत्वा जप्पनं सामन्तजप्पा ति वेदितब्बं । परिकथा ति । यथा तं लभति तस्स परिवत्तेत्वा कथनं ति । निप्पेसिकतानिद्देसे - अक्कोसना ति । दसहि अक्कोसवत्थूहि अक्कोसनं । वम्भना ति । परिभवित्वा कथनं । गरहणा ति । 'अस्सद्धो अप्पसन्नो' ति आदिना नयेन दोसापोपना । उक्खेपना ति । ' मा एतं एत्थ कथेथा' ति वाचाय उक्खिपनं । सब्बतोभागेन सवत्थुकं सहेतुकं कत्वा उक्खपना समुक्खेपना । अथ वा अदेन्तं दिस्वा 'अहो दानपती' ति एवं उक्खिपनं उक्खेपना। ‘महादानपती' ति एवं सुठु उक्खपना समुक्खेपना । खिपना ति । किं इमस्स जीवितं बीजभोजिनो ति एवं उप्पण्डना । सङ्क्षिपना ति । 'किं इमं अदायको ति भणथ, या निच्चकालं सब्बेसं पि नत्थी ति वचनं देती' ति सुट्टुतरं उप्पण्डना । पापना ति । अदायकत्तस्स अवण्णस्स वा पापनं । सब्बतोभागेन पापना सम्पापना । अवण्णहारिका ति । एवं मे अवण्णभया पि दस्सती' ति गेहतो गेहं, गामतो गामं, जनपदतो जनपदं अवण्णहरणं । परपिट्ठिमंसिकता ति । पुरतो मधुरं भणित्वा परम्मुखे अवण्णभासिता । एसा हि अभिमुखं ओलोकेतुं असक्कोन्तस्स परम्मुखानं पिट्ठिमंसखादनमिव होति, तस्मा परपिट्ठिमंसिकता ति वृत्ता । अयं वुच्चति निप्पेसिकता ति । अयं यस्मा वेळुपेसिका विय 1 चिकनी लार ऐसे बहने लगी मानो घड़े में रखा घी बह रहा हो। यह सुनकर उस गृहिणी ने समझ लिया कि इस भिक्षु को धोखा देना शक्य नहीं है। तब उसने भिक्षु को चूसने के लिये ईख देकर (कुछ ही समय में) भात पकाकर उसे घृत गुड़ मिश्रित मत्स्यखण्डों के साथ खान के लिये दिया । इस तरह किसी वस्तु का सामीप्य ( बहाना = व्याज) बनाकर कहना 'सामन्तजप्प' समझना चाहिये । परिकथा - जिस बात को जैसे देखा हो, उससे उलटकर उसको कहना । उक्त पालिपाठ के निप्पेसिकतानिर्देश में- अक्कोसना दशविध आक्रोश - वस्तुओं से संवादी कोसना (आक्रोशन) । ( द्र० - सं. नि०अ०क० १, ११, १४) वम्भना - हावी होना, दूसरे का परिभव करते हुए (नीचा दिखाते हुए) बोलना। गरहणा (गर्हणा ) - ' यह (त्रिरत्न के प्रति ) अश्रद्धालु है', 'यह अप्रसन्न (चिड़चिड़ा) रहता है' इत्यादि प्रकार से दोषारोपण (निन्दा) करना । उक्खेपना- 'इसको यहाँ ऐसा मत कहो - इस प्रकार वाणी से उत्क्षेपण (बात करने से रोकना)। समुक्खेपना- सब तरफ से कारण (हेतु) दरसाते हुए बात करने से रोकना । अथवा-अदाता (लोभी, कअस) के प्रति 'यह तो महादानपति है' ऐसी वाणी (शब्दावली ) का प्रयोग कर उत्क्षेपण करना ही 'समुत्क्षेपण' कहलाता है। खिपना - 'अरे! इस बीजभोगी का भी कोई जीवन है!' इस प्रकार उपहास करना । सपना - 'अरे! इसको अदायक (कुछ भी न देनेवाला) क्यों कह रहे हो, यह तो प्रत्येक याचक को - 'नहीं है, कुछ नहीं दूंगा' ऐसा वचन देता रहता है"- ऐसी बातों से स्पष्टतः उपहास करना । पापना - 'अदायकत्व' आदि शब्दों से अकीर्ति या निन्दा का पात्र बनाना । सम्पापना- सब तरफ से निन्दा का पात्र बनाना । अवण्णहारिका - 'इस प्रकार इसकी निन्दा करने से भी यह मुझे कुछ दे देगा' -यों सोचकर इस घर से उस घर में, इस गाँव से उस गाँव में, इस जनपद से उस जनपद में किसी की निन्दा करते फिरना । परपिट्ठिमंसिकता सामने मीठी-मीठी बातें करके पीठ पीछे निन्दा करना । यह दुर्गुण दूसरे की पीठ, जिसे वह सामने से देखने में असमर्थ है, का मांस खाने के समान है, इसलिये इसको 'परपिट्ठिमंसिकता' कहते हैं। अयं दुष्यति निप्पेसिकता - क्योंकि जैसे बाँस का बना परिमार्जक (लकड़ी का टुकड़ा)
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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