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विसुद्धिमग्ग नयेन निमित्तकरणं । ओभासो ति। पच्चयपटिसंयुत्तकथा। ओभासकम्मं ति।वच्छपालके दिस्वा "किं इमे वच्छा खीरगोवच्छा, उदाहु तकगोवच्छा" ति पुच्छित्वा "खीरगोवच्छा भन्ते" ति वुत्ते "न खीरगोवच्छा यदि खीरगोवच्छा सियं, भिक्खू पि खीरं लभेय्यु" ति एवमादिना नयेन तेसं दारकानं मातापितूनं निवेदेत्वा खीरदापनादिकं ओभासकरणं । सामन्तजप्पा ति। समीपं कत्वा जप्पनं। कुलूपकभिक्खुवत्थु चेत्थ वत्तब्बं ।
कुलूपको किर भिक्षु भुञ्जितुकामो गेहं पविसित्वा निसीदि। तं दिस्वा अदातुकामा घरणी "तण्डुला नत्थी" ति भणन्ती तण्डुले आहरितुकामा विय पटिविस्सकघरं गता। भिक्खु पि अन्तोगब्भं पविसित्वा ओलोकेन्तो कवाटकोणे इच्छु, भाजने गुळं, पिटके लोणमच्छफाले, कुम्भियं तण्डुले, घटे घतं दिस्वा निक्खमित्वा निसीदि। घरणी "तण्डुले नालत्थं" ति आगता। भिक्खु"उपासिके, अज्ज भिक्खा न सम्पजिस्सती ति पटिकच्चेव निमित्तं अद्दसं" ति आह । "किं भन्ते ति"? "कवाटकोणे निक्खित्तं उच्छु विय सप्पं अद्दसं, 'तं पहरिस्सामी' ति ओलोकेन्तो भाजने ठपितं गुळपिण्डं विय पासाणं, लेडुकेन पहटेन सप्पेन कतं पिटके निक्खित्तलोणमच्छफालसदिसं फणं, तस्स तं लेड्डु डंसितुकामस्स कुम्भिया तण्डुलसदिसे दन्ते, अथस्स कुपितस्स घटे पक्खित्तघतसदिसं मुखतो निक्खमन्तं हेतु की गयी काय या वाणी की क्रियाओं के संकेत को। निमित्तकम्म- संकेत करना। किसी भोज्य पदार्थ को लेकर जाते हुए को देखकर 'क्या कुछ खाने योग्य पाया है?' आदि प्रकार से संकेत करना। ओभासो-प्रत्ययसम्बन्धी बातें करना । ओभासकम्मं (बच्चे ले जाते हुए) ग्वाले को देखकर उससे 'क्या ये बच्चे दूध पीने वाले हैं या छाछ (तक्र)?'- ऐसा पूछे जाने पर, उसके द्वारा 'दूध पीने वाले बच्चे हैं, भन्ते!' ऐसा कहे जाने पर, 'नहीं, ये दूध तो नहीं पीते, यदि दूध पीते तो भिक्षु भी दूध पाते'-आदि प्रकार की बातों से उन बच्चों के माता-पिताओं के कान में बात डलवाकर भिक्षुओं को दूध दिलाने का संकेत करना। सामन्तजप्पा (सामन्तजल्पन)-समीप (सम्मुख) करके संवाद करना। यहाँ कुलूपकमिक्खु का संवाद कहना चाहिये। वह संवाद यों है
"कोई कुलोपग (परिवारों में जाकर वहाँ बैठकर भोजन ग्रहण करने वाला) भिक्षु भोजन करने की इच्छा से किसी गृहस्थ के घर में जाकर बैठ गया। उसे देखकर उस घर की गृहिणी, उसे कुछ न देने की इच्छा से 'चावल नहीं है'-कहती हुई और ऐसा भाव दिखाती हुई सी कि मानों दूसरे के घर से चावल माँगने जा रही हैं-अपने किसी पड़ोसी (प्रतिवेशी) के घर चली गयी। पीछे से, वह भिक्षु भी उस घर में भोज्य पदार्थ खोजता हुआ अन्दर कमरे में घुस गया। वहाँ वह किवाड़ों के पीछे ईख, एक पात्र में गुड़, एक छावड़ी (पिटक) में नमक मिले मछली के टुकड़े, एक घड़े में चावल, एक कुम्भी में घृत देखकर वापस आकर अपने स्थान पर बैठ गया। उधर वह गृहिणी भी पड़ौसी से चावल नहीं मिला' कहती हुई लौट आयी। भिक्षु भी उपासिके! मुझे आज कुछ भी भिक्षा नहीं मिलेगीयह मैंने आज प्रातःही शकन देख लिया था'-ऐसे बोला। उपासिका ने पूछा-क्या शकुन देखा था, भन्ते?' "मैंने किवाड़ों के कोने में ईख की तरह सीधे खड़े सांप को देखकर उस पर प्रहार करूंगा' यह सोचकर उसको मारने का साधन खोजते हुये पात्र में रखी गुड़ की मेली की तरह पत्थर का . टुकड़ा (देखा), उससे प्रहार करने पर कुद्ध सर्प ने छावड़ी में रखे नमक मिले मत्स्यखण्ड की तरह अपना फन फैलाया और उस पर फेंके गये पत्थर को काटने के लिये अपने दाँत निकाले, वे दाँत ऐसे लग रहे थे मानों घड़े में रखे चावल के दाने हों और तब उस कुद्ध सर्प के मुख से विषमिश्रित