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________________ विशुद्धिमग्ग (१) खुद्दक पाठ - इसमें त्रिशरण, दश शिक्षापद आदि बौद्धधर्म में प्रवेश चाहने वालों के लिये अवश्य ज्ञातव्य विषयों का समावेश है । ८ (२) धम्मपद - बौद्ध ग्रन्थों में यह सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं महत्त्वशाली ग्रन्थ है। इसमें भगवान् बुद्ध द्वारा प्रोक्त नैतिक उपदेशों का संग्रह है। (३) उदान - इसमें एक ही विषय का निरूपण करनेवाली अल्पसंख्यक गाथाओं का संग्रह है। प्रासंगिक दो-चार गाथाओं में भगवान् ने अपना मन्तव्य व्यक्त किया है। (४) इतिवृत्तक - इस ग्रन्थ में 'भगवान् ने ऐसा कहा' - इस मन्तव्य से गाथाओं तथा गद्यांशों का संग्रह है । (५) सुत्तनिपात - इसमें भगवान् के प्राचीनतम उपदेशों का संग्रह है। (६) विमानवत्थु - इसमें देवयोनि की कथाओं के सहारे कर्मफल- सिद्धान्त का वर्णन हुआ है। (७) पेतवत्थु - इस ग्रन्थ में प्रेतयोनि-कथाओं के प्रमाण से कर्मफल का वर्णन है। - ( ८ ) थेरगाथा - इस ग्रन्थ में बौद्ध भिक्षुओं ने अपना-अपना अनुभव काव्य में व्यक्त किया है। (९) थेरीगाथा- इसमें बौद्ध भिक्षुणियों ने अपना-अपना अनुभव कविता के माध्यम व्यक्त किया है। (१०) जातक - इस ग्रन्थ में भगवान् बुद्ध के पूर्वजन्मकृत सदाचारों को व्यक्त करनेवाली ५४७ कथाओं का संग्रह है । नीतिशिक्षण की दृष्टि से इन कथाओं की समानता करनेवाला ग्रन्थ अन्यत्र सुदुर्लभ है। ( ११ ) निद्देस - यह ग्रन्थ सुत्तनिपात के अट्ठकवग्ग तथा खग्गविषाणसुत्त एवं पारायण वग्ग की व्याख्या है। यह चुल्लनिद्देस तथा महानिद्देस नाम से दो भागों में विभक्त है; (१२) पटिसम्भिदामग्ग - इसमें प्राणायाम, ध्यान कर्म, आर्यसत्य, मैत्री आदि का वर्णन है । (१३) अवदान - इसमें अर्हतों (ज्ञानियों) के पूर्वजन्मों का वर्णन है । (१४) बुद्धवंस - इसमें भगवान् बुद्ध से पूर्व हुए २४ बुद्धों का जीवनचरित है। (१५) चरियापिटक5- यह खुद्दकनिकाय का अन्तिम ग्रन्थ है। इसमें बुद्ध ने अपने पूर्वभव में कौन-सी पारमिता, किस भव में, किस प्रकार पूर्ण की - इसका वर्णन है । और ७. (ग) अभिधम्मपिटक - इस पिटक में भगवान् बुद्ध के उपदेशों के आधार पर बौद्धदार्शनिक विचारों की व्याख्या की गयी है। इस पिटक में इन सात ग्रन्थों का समावेश है१. धम्मसङ्गणि, २. विभङ्ग, ३. धातुकथा, ४. पुग्गलपञ्ञत्ति, ५. कथावत्थु, ६. यमक, पट्ठान । (१) धम्मसङ्गणि- इसमें धर्मों का वर्गीकरण और व्याख्या की गयी है । (२) विभङ्ग - इसमें उन्हीं धर्मों के वर्गीकरण का विस्तार किया है । (३) धातुकथा- इसमें धातुओं का प्रश्नोत्तररूप में व्याख्यान है। (४) पुग्गलपञ्ञत्ति- - इस ग्रन्थ में मनुष्यों का विविध अङ्गों में वर्णन किया गया है। यह वर्गीकरण विविध रीति से गुणों के आधार पर है। (५) कथावत्थु - इस ग्रन्थ की रचना प्रश्नोत्तररूप में हुई है। इस ग्रन्थ का महत्त्व
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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