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विसुद्धिमग्ग की
बहिरङ्गकथा पालीतिवुत्तविजूनं देशनानयनिस्सिता।
विसुद्धिमग्गगन्थस्स बहिरङ्गकथा अयं॥ त्रिपिटक का विकास
पालित्रिपिटक सिंहल (श्रीलङ्का) में राजा वट्टगामणि के शासनकाल में भगवान् के महापरिनिर्वाण से प्रायः चार शताब्दी बाद अपने वर्तमान रूप में लिखा गया। इस प्रकार वर्तमान पालित्रिपिटक का निबन्धनकाल ईसापूर्व प्रथम शताब्दी माना जा सकता है।
इस त्रिपिटक के विनय, सूत्र तथा अभिधर्म-ये तीन विभाग (पिटक) हैं।
(क)विनयपिटक-भिक्षुओं के आचरण का नियमन करने के लिए भगवान् बुद्ध ने जो नियम बनाये थे, वे 'प्रातिमोक्ष' (पातिमोक्ख) कहे जाते है। इन्ही नियमों की चर्चा विनयपिटक में है। तीनों पिटकों में विनयपिटक का स्थान सर्वप्रथम है। प्रातिमोक्ष की महत्ता इसी से सिद्ध है कि भगवान् ने स्वयं कहा था कि उनके न रहने पर भी प्रातिमोक्ष और शिक्षापदों के कारण भिक्षुओं को अपने कर्तव्य का ज्ञान होता रहेगा और यों सच भी स्थायी रहेगा।
प्रारम्भ में केवल १५२ नियम बने होंगे, किन्तु विनयपिटक की रचना के समय उनकी संख्या २२७ हो गयी थी। भिक्खुविभङ्ग', जो विनयपिटक का प्रथम भाग है, वस्तुतः इन २२७ नियमों का विधान करनेवाले शिक्षापदों की व्याख्या है। ये व्याख्यात्मक ग्रन्थ पाराजिक, पाचित्तिय नाम से प्रसिद्ध हैं। विनयपिटक के दूसरे भाग का नाम 'खन्धक' है। महावग्ग तथा चुलवग्ग ये दोनों ग्रन्थ 'खन्धक' में समाविष्ट है। विनयपिटक का अन्तिम अंश परिवार है। इसमें वैदिक अनुक्रमणिकाओं की तरह त्रिपिटक से सम्बद्ध कई सूचियों का समावेश है।
(ख) सुत्तपिटक-यह भगवान् के लोकोपकारी उपदेशों का संग्रह है। इसमें १. दीघनिकाय, २. मज्झिमनिकाय, ३. संयुत्तनिकाय, ४. अंगुत्तरनिकाय और ५. खुद्दकनिकाय-इन पाँच निकायों का समावेश है।
१.दीघनिकाय में ३४ सुत्त (सूत्र) हैं। ये सुत्त लम्बे हैं, अत: 'दीघ' (दीर्घ) कहे गये हैं। इनमें यथास्थान शील, समाधि एवं प्रज्ञा का रोचक वर्णन है।
२. मझिमनिकाय में मध्यम आकार के (न अधिक लम्बे न छोटे) १५२ सूत्तों में भी बुद्ध के उपदेशों का संवादात्मक संग्रह है। इनमें चार आर्यसत्य, निर्वाण, कर्म, सत्कायदृष्टि, आत्मवाद, ध्यान आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों की चर्चा है। यह ग्रन्थ भी मूलपण्णासक, मझिमपण्णासक तथा उपारपण्णासक नाम से ५०-५०-५२ सुत्तों से तीन भागों में विभक्त है।
३. संयुत्तनिकाय में ५६ संयुत्तों का संग्रह है। जैसे-प्रथम देवतासंयुत्त में देवताओं के वचनों का तथा मारसंयुत्त में बुद्ध को विचलित करने के लिये मार द्वारा किये गये प्रयत्नों का संग्रह है। इस ग्रन्थ में काव्य की दृष्टि से भी पर्याप्त सामग्री है।।
४. अंगुत्तरनिकाय में २३०८ सुत्त हैं। उनमें एक वस्तु से लेकर ग्यारह वस्तुओं तक का क्रमशः समावेश किया गया है। इसमें विषय-वैविध्य का होना स्वाभाविक है।
५. खुद्दकनिकाय में- खुद्द (क्षुद्र) अर्थात् छोटे-छोटे उपदेश ग्रन्थों का संग्रह है। इन निकाय में निम्नलिखित १५ ग्रन्थों का समावेश है