SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दो शब्द ... यह बात सभी विद्वान् मानते हैं कि बौद्धधर्म-दर्शन के क्षेत्र में आचार्य बुद्धघोष के इस 'विसुद्धिमग्ग' ग्रन्थ का स्थान विशिष्टतम है। __ इस ग्रन्थरत्न की विषयवस्तु एवं महत्त्व पर इस संस्करण की भूमिका में प्रधान सम्पादक द्वारा पर्याप्त लिखा गया है, अतः उस विषय पर पुनः कुछ लिखना पिष्टपेषण ही माना जायगा। पालि से हिन्दी-रूपान्तर के क्षेत्र में हमारा यह प्रथम प्रयास है। जिस प्रकार . निर्गन्ध पुष्प यदि देवता के चरणों में रख दिया जाय तो वह भी शीर्ष पर धारण करने योग्य हो जाता है; उसी प्रकार जिस कार्य को पालि से हिन्दी रूपान्तर के अभ्यासमात्र या स्वान्तःसुखाय के रूप में प्रारम्भ किया गया था, वह मात्र एक वर्ष की अल्पावधि में पूज्य स्वामी जी के वात्सल्यमय प्रोत्साहन, कुशल निर्देशन तथा समुचित संशोधन एवं परिष्कार के फलस्वरूप सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो रहा है। प्रारम्भ से ही हमारा उद्देश्य इस ग्रन्थ का भाषान्तरमात्र न कर इस की विषयवस्तु का स्पष्टीकरण भी रहा है, अतः इस अनुवाद में यथास्थान कोष्ठकों का मुक्त भाव से प्रयोग करना पड़ गया है। ___ कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्येक भाषा की अपनी प्रकृति होती है। इस अनुवाद में हमने हिन्दी एवं पालि-दोनों ही भाषाओं की प्रकृति के साथ न्याय करने का प्रयास किया है। हमें अपने कार्य में भिक्षु आणमोलि जी कृत इस ग्रन्थ के अंग्रेजी अनुवाद से बहुत सहायता मिली है। एतदर्थ हम उनके आभारी हैं। .. अन्ते च, ऐसे बृहत् कार्य में त्रुटियाँ रहना स्वाभाविक हैं । विद्वज्जनों एवं अध्येताओं से विनम्र अनुरोध है कि प्रस्तुत संस्करण की त्रुटियाँ हमें अवश्य अवगत कराते रहें जिससे द्वितीय संस्करण में उनका परिमार्जन व परिशोधन हो सके। - अनुवादिका
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy