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१.सीलनिद्देस
तत्थ कतमा लपना? लाभसकारसिलोकसन्निस्सितस्स पापिच्छस्स इच्छापकतस्स या परेसं आलपना, लपना, सल्लपना, उल्लपना, समुल्लपना, उन्नहना, समनुनहना, उकाचना, समुक्काचना, अनुप्पियभाणिता, चाटुकम्यता, मुग्गसूप्यता, पारिभट्यता-अयं वुच्चति लपना।
तत्थ कतमा नेमित्तिकता? लाभसकारसिलोकसन्निस्सितस्स पापिच्छस्स इच्छापकतस्स यं परेसं निमित्तं, निमित्तकम्मं, ओभासो, ओभासकम्मं, सामन्तजप्पा, परिकथाअयं वुच्चति नेमित्तिकता।
तत्थ कतमा निप्पेसिकता? लाभसकारसिलोकसन्निस्सितस्स पापिच्छस्स इच्छापकतस्स या परेसं अकोसना, वम्भना, गरहना, उक्खेपना, समुक्खेपना, खिपना, सजिपना, पापना, सम्पापना, अवण्णहारिका, परपिट्ठिमंसिकता-अयं वुच्चति निप्पेसिकता।
तत्थ कतमा लाभेन लाभं निजिगिंसनता? लाभसकारसिलोकसन्निस्सितो पापिच्छो इच्छापकतो इतो लद्धं आमिसं अमुत्र हरति, अमुत्र वा लद्धं आमिसं इध आहरति, या एवरूपा आमिसेन आमिसस्स एट्ठि, गवेट्ठि, परियेट्ठि, एसना, गवेसना, परियेसना-अयं पुच्चति लाभेन लाभं निजिगिंसनता" (अभि० २-४१९) ति। में विकृति, अस्थिरता, कृत्रिमता लाना या भृकुटि चढ़ाना या टेढ़ी करना, ठगना, ढोंग करना या ऐसा ही अन्य किसी अगसञ्चालन से प्रकटित भाव-यही 'कुहना' कहलाता है।
वहाँ 'लपना' क्या है? लाभ सत्कार या यश पाने के प्रलोभन...पूर्ववत्...जो दूसरों के प्रति व्यङ्गय (छेड़-छाड़) करना, किसी विषय में पूछने पर विषयान्तर की बात प्रारम्भ कर देना, बात को कुछ बढ़ा-चढ़ा कर कहना, (लपना), बात को सब तरफ से बढ़ा-चढ़ा कहना (समुल्लपना). दूसरों को बातों में चढ़ाकर उनमें फँसाना (उन्नहना), सब तरह से बातों में घेर कर फँसाना (समुन्नहना), बढ़ाचढ़ा कर (अपने या दूसरों के) गुणों का वर्णन करना (उक्काचना), पुनः पुनः सब तरह से बढ़ा-चढ़ा कर गुणों का वर्णन (समुक्काचना), बोली जाने वाली बातों को सत्य या धर्म के अनुरूप न समझते हुए भी दूसरों के प्रति (खुशामद के लिये) प्रिय बातों को बोलना (अनुप्रियभाणिता), चापलूसी करना (चाटुकम्यता), झूठ-सच बोलना (मुग्गसूप्यता=मुद्गसूप्यता), स्वार्थसिद्धि के लिये सेवा-टहल करना (पारिभट्यता)-इसे ही लपना (वाचालता) कहते हैं।
वहाँ 'नैमित्तिकता' क्या है? लाभ-सत्कार....जो दूसरों के प्रति बातचीत में अपने लिये चीवर आदि का आभास देना, संकेत करना, बात को दूसरों के लिये कही जाने वाली सी (गोलमोल-परोक्ष) करके अपने लिये कहना, स्वार्थपूर्ति कराने हेतु बात को घुमा फिराकर कहना (परिकथा)--यही 'नैमित्तिकता' कहलाती है।
"वहाँ 'निरिकता' क्या है? लाभ-सत्कार....जो दूसरों के प्रति आक्रोश (डॉट-फटकार). उनपर हावी होना (वम्भना), उन पर दोषारोपण करना (गर्हणा), बात करते हुए को बार-बार रोकना (समुत्क्षेपण), उसकी हँसी उड़ाना (क्षेपण), उसका बहुत अधिक परिहास करना (संक्षेपण), निन्दा (पापना), सब तरफ से निन्दा करेना (सम्पापना), मिथ्या आरोपों से बदनाम करना (अवण्णहारिका), पीठ पीछे मिथ्या आरोप (बदनामी) लगाना (परपिट्टिमंसिकता)-वह 'निष्पेषिकता' कहलाती है।
वहाँ एक लाभ से दूसरा लाभ खोजना' (लाभेन लामं निजिर्गिसनता) क्या है? लाभसत्कार.. के लिये यह जो यहाँ मिले (चार प्रत्ययों के) लाभ को वहाँ ले जाता है वहाँ मिले लाभ को यहाँ ले आता है, या इसी प्रकार से वस्तु की खोज (इष्टि), गवेषणा, पर्यन्वेषण (बार-बार खोजना=परीष्टि). चाहना (एषणा), खोजना (गवेषणा), बार-बार खोजना (पर्यषणा) है-यही 'एक लाभ से दूसरे लाभ को खोजना' कहलाता है।"