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________________ १० विसुद्धिमग्न सीलेन च तदङ्गप्पहानवसेन किलेसप्पहानं पकासितं होति, समाधिना विक्खम्भनप्पहानवसेन, पाय समुच्छेदप्पहानवसेन। १३. तथा सीलन किलेसानं वीतिकमपटिपक्खो पकासितो होति, समाधिना परियुट्ठान-पटिपक्खो, पाय अनुसयपटिपक्खो। । ___ सीलेन च दुच्चरितसङ्किलेसविसोधनं प्रकासितं होति, समाधिना तण्डासङ्किलेसविसोधनं, पाय दिट्ठिसङ्किलेसविसोधनं। . . . - १४. तथा सीलेन सोतापनसकदागामिभावस्स कारणं पकासितं होति, समाधिना अनागामिभावस्स, पज्ञाय अरहत्तस्स। सोतापन्नो हि "सीलेसु परिपूरकारी" (अं० नि० १-२१४) ति वुत्तो। तथा सकदागामी। अनागामी पन "समाधिस्मिं परिपूरकारी" (अं० नि०१-२१४) ति। अरहा पन "पञ्जाय परिपूरकारी" (अं०नि०१-२१५) ति। . - १५. एवं एत्तावता तिस्सो सिक्खा, विविधकल्याणंसासनं, तेविज्जतादीनं उपनिस्सयो, अन्तद्वयवजनमज्झिमपटिपत्तिसेवनानि, अपायादिसमतिकमनुपायो, तीहाकारे हि किलेसप्पहानं, वीतिकमादीनं पटिपक्खो, सङ्किलेसत्तयविसोधनं, सोतापन्नादिभावस्स च कारणं ति इमे नव, अजे च एवरूपा गुणत्तिका पकासिता होन्ती ति॥ ३.तिर्यग्योनि. ४. असुरकाय) में जन्म लेने से छुटकारा पा लेने का उपाय कहा गया है। समाधि द्वारा कामधातु के समतिक्रमण का एवं प्रज्ञा द्वारा सभी भवों (कामभव, रूपभव, अरूपभव) को अतिक्रान्त कर (लाँघ) जाने का उपाय बताया गया है। क्लेशप्रहाण-शील से तदङ्ग (कुशल से अकुशल) के प्रहाण के सहारे, क्लेश-प्रेहाण प्रदर्शित किया गया है; 'समाधि से विष्कम्भन-प्रहाण (नीवरण आदि का दमन करते हुए उनका शनैः शनैः प्रहाण) एवं प्रज्ञा से समुच्छेद-प्रहाण (चार आर्यमार्गों की भावना से क्लेशों का सर्वथा क्षय एवं पुनरनुत्पाद) प्रदर्शित किया है। क्लेशप्रहाण- १३. वैसे ही 'शील' से क्लेशों का व्यतिक्रमरूप क्लेश-प्रतिपक्ष कहा गया है। 'समाधि' से पुनः पुनः उठ खड़े होने (पर्युत्थान) वाले क्लेशों का प्रतिपक्ष एवं 'प्रज्ञा' द्वारा सात अनशयों (१. कामराग. २. प्रतिघ. ३. मिथ्यादष्टि, ४. विचिकित्सा, ५. मान, ६. भवराग एवं ७. अविद्या) का प्रतिपक्ष बताया गया है। क्लेशविशोधन- एवं 'शील' से दुश्चरितरूप संक्लेश का प्रहाण, (दुश्चरितसंक्लेश का विशोधन), 'समाधि' से तृष्णारूप संक्लेश का विशोधन (प्रहाण) एवं 'प्रज्ञा' से दृष्टिरूप संक्लेश का प्रहाण द्योतित होता है। चार आर्यमार्ग- १४. 'शील से चार आर्यमार्गों में से स्रोतआपन्नत्व एवं सकृदागामित्व का तथा 'समाधि' से अनागामित्व का एवं 'प्रज्ञा' से अर्हत्त्व का कारण द्योतित किया गया है। पालि मेंस्रोतआपन्न पुद्गल शीलों में परिपूर्णता प्राप्त करने वाला कहा गया है। वैसे ही सकृदागामी भी कहा गया है; परन्तु अनागामी समाधि में परिपूर्णता करने वाला एवं अर्हत् प्रज्ञा में परिपूर्णता करने वाला कहा गया है। १५. इस तरह, इतने प्रकरण से-१.तीन शिक्षाएँ, २.त्रिविध (आदि-मध्य-अन्त) कल्याणकर शासन, ३.विदय का उपनिश्रय, ४. अन्तद्वयर्जनपूर्वक मध्यम मार्ग का अनुपालन, ५. दुर्गतिविनिपात आदि अपाय के समतिक्रमण का उपाय, ६.त्रिविध क्लेशों का प्रहाण,७.व्यतिक्रम आदि का प्रतिपक्ष,
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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