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विसुद्धिमग्ग ५. इतो च एत्तो च विविधाकारेन सोणसिङ्गालादीहि खायितं ति विक्खायितं, विक्खायितमेव विक्खायितकं। पटिक्कूलत्ता वा कुच्छितं विक्खायितं ति विक्खायितकं। तथारूपस्स छवसरीरस्सेतं अधिवचनं ।
६. विविधं खित्तं विक्खित्तमेव विक्खित्तकं । पटिकूलत्ता वा कुच्छितं विक्खित्तं ति विक्खित्तकं । अञ्जन हत्थं अजेन पादं अञ्जन सीसं ति एवं ततो ततो खित्तस्स छवसरीरस्सेतं अधिवचनं।
७. हतं च तं पुरिमनयेनेव विक्खित्तकं चा ति हतविक्खित्तकं । काकपदाकारेन अङ्गपच्चङ्गेसु सत्थेन हनित्वा वुत्तनयेन विक्खित्तस्स छवसरीरस्सेतं अधिवचनं।
८. लोहितं किरति विक्खिपति इतो चितो च पग्घरती ति लोहितकं । पग्घरितलोहितमक्खितस्स छवसरीरस्सेतं अधिवचनं।
९. पुळवा वुच्चन्ति किमयो। पुळवे किरती ति पुळवकं । किमिपरिपुण्णस्स छवसरीरस्सेतं अधिवचनं।
१०. अट्ठि येव अट्ठिकं । पटिकूलत्ता वा कुच्छितं अट्ठी ति अट्ठिकं । अट्ठिसङ्खलिकाय पि एकढिकस्स पि एतं अधिवचनं।
इमानि च पन उद्धमातकादीनि निस्साय उप्पन्ननिमित्तानं पि निमित्तेसु पटिलद्धज्झानानं पि एतानेव नामानि।
उद्धमातकभावनाविधानं ११. तत्थ उद्भुमातकसरीरे उद्धमातकनिमित्तं उप्पादेत्वा उद्भुमातकसङ्घातं झानं भावेतुकामेन योगिना पथवीकसिणे वुत्तनयेनेव वुत्तप्पकारं आचरियं उपसङ्कमित्वा कम्मट्ठानं
५. इधर उधर से, अनेक प्रकार से कुत्ते-सियार आदि द्वारा खाया गया मृत-शरीर "विक्खायितक' (विखादितक) है। विक्खायित ही विक्खायितक है। अथवा प्रतिकूल होने से कुत्सित विक्खायित "विक्खायितक' है। वैसे शव का यह अधिवचन है। (५)
६. इधर-उधर बिखरा हुआ (=क्षिप्त) ही विक्खित (विक्षिप्त) है। अथवा प्रतिकूल होने से कुत्सित विक्खित्त ही 'विक्खित्तक है। कहीं हाथ, कहीं पैर, कहीं सिर-इस प्रकार इधर उधर बिखरे हुए शव का यह अधिवचन =दयोतक है। (६)
७.हत्या करके पूर्वोक्त प्रकार से विखराया गया शव 'हतविक्षिप्तक' कहलाता है। जिस शव के अङ्ग-प्रत्यङ्ग शस्त्र से काटकर, कौए के पैर के आकार में बिखेर दिये गये हों-ऐसे शव का यह पर्याय है। (७)
८. उससे रक्त ( खून) निकलता है, इधर-उधर फैलता है, बहता है, अतः वह 'लोहितक' है। बहते हुए खून से अभिव्याप्त (मक्खित) शव का यह अधिवचन है। (८)
९. पुलव (संस्कृत में, पुलक=एक प्रकार का कीड़ा) कृमियों (कीड़ों) को कहा जाता है। (उस शव से) कृमि निकलते हैं, इसलिये 'पुलवक' है। कृमियों से भरे शव का यह अधिवचन है। (९)
१०. अस्थि (हड्डी) ही 'अट्ठिक' (=अस्थिक है। अथवा प्रतिकूल होने से कुत्सित अस्थि अट्टिक है। अस्थिकङ्काल का भी और एक अस्थि का भी यह अधिवचन है। (१०)
इन उद्धमातक आदि के आश्रय से उत्पन्न निमित्तों के एवं निमित्तों में प्राप्त ध्यानों के भी ये उद्धमातक आदि नाम हैं।