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________________ ५. सेसकसिणनिद्देस २३७ लोहितकस्मि निमित्तं गण्हाति पुप्फस्मि वा वत्थस्मि वा वण्णधातुया वा" ति। तस्मा इधा पि कताधिकारस्स पुञ्जवतो तथारूपं बन्धुजीवकादिमालागच्छं वा पुप्फसन्थरं वा लोहितकवत्थमणिधातूनं अतरं दिस्वा व निमित्तं उप्पज्जति।इतरेन जयसुमन-बन्धुजीवकरत्तकोरण्डकादिपुप्फेहि वा रत्तवत्थेन वा धातुना वा नीलकसिणे वुत्तनयेनेव कसिणं कत्वा "लोहितकं, लोहितकं" ति मनसिकारो पवत्तेतब्बो। सेसं तादिसमेवा ति॥ लोहितकसिणं॥ ओदातकसिणकथा १२. ओदातकसिणे पि "ओदातकसिणं उग्गण्हन्तो ओदातस्मि निमित्तं गण्हाति पुप्फस्मि वा वत्थस्मि वा वण्णधातुया वा" ति वचनतो कताधिकारस्स ताव पुञ्जवतो तथारूपं मालागच्छंवा वस्सिकसुमनादिपुप्फसन्थरं वा कुमुदतिपदुमरासिंवा ओदातवत्थधातूनं वा अञ्जतरं दिस्वा वनिमित्तं उप्पज्जति, तिपुमण्डल-रजतमण्डल-चन्दमण्डलेसु पि उप्पज्जति येव। इतरेन वुत्तप्पकारेहि ओदातपुप्फेहि वा ओदातवत्थेन वा धातुना वा नीलकसिणे वुत्तनयेनेव कसिणं कत्वा "ओदातं, ओदातं" ति मनसिकारो पवत्तेतब्बो। सेसं तादिसमेवा ति॥ ओदातकसिणं॥ आलोककसिणकथा १३. आलोककसिणे पन"आलोककसिणं उग्गण्हन्तो आलोकस्मि निमित्तंगण्हाति लोहितकसिण ११. लोहित (लाल) कसिण में भी यही विधि है। क्योंकि कहा गया है-"लोहितकसिण का ग्रहण करने वाला लाल फूल, लाल वस्त्र या लाल रंगवाली धातु में निमित्त ग्रहण करता है।" इसलिये यहाँ भी पूर्वजन्म में अभ्यास कर चुके पुण्यवान् को वैसे लाल रंग के बन्धुजीवक आदि या फूलों की झाड़ी, बिछाये गये फूलों, लाल वस्त्र, मणि, धातुओं में से किसी एक को देखकर ही निमित्त उत्पन्न हो जाता है। दूसरों को जयसुमन, बन्धुजीवक, रक्तकोरण्डक आदि पुष्पों से या लाल वस्त्र या धातु से, नील कसिण में कथित विधि के अनुसार ही कसिण बनाकर "लाल, लाल" इस प्रकार मन में लाना चाहिये। शेष पूर्वोक्त जैसा ही है।। लोहितकसिण का वर्णन समाप्त।। अवदात (=शेत) कसिण १२. श्वेतकसिण में भी "श्वेत कसिण का ग्रहण करने वाला वेत फूल, वस्त्र या (श्वेत) रंग वाली धातु में निमित्त ग्रहण करता है"-इस वचन के अनुसार, पूर्व जन्म में अभ्यास कर चुके पुण्यवान् को वैसे श्वेत रंग के फूलों.या झाड़ी, चमेली आदि के बिछाये हुए फूलों, श्वेत कमलों के समूह या श्वेत वस्त्र व धातु में से किसी एक को देखकर निमित्त उत्पन्न होता है। साथ ही, टिन से बनाये गये मण्डल, रजत (=चाँदी) मण्डल एवं चन्द्रमण्डल में भी उत्पन्न होता है। दूसरों को उक्त प्रकार से श्वेत पुष्पों, श्वेत वस्त्र या धातु से नीलकसिण में कहे गये के अनुसार ही कसिण बनाकर “श्वेत, वेत" इस प्रकार मन में लाना चाहिये।। अवदातकसिण का वर्णन समाप्त ।। आलोक (=प्रकाश) कसिण १३. आलोककसिण में "आलोक कसिण का ग्रहण करने वाला झेरोखे, या उस छेद में
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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