SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९४ विसुद्धिमग्ग कामो- इमे वुच्चन्ति कामा" (अभि० २-३०८) ति एवं किलेसकामा वुत्ता, ते सब्बे पि सङ्गहिता इच्चेव दट्ठब्बा। एवं हि सति विविच्चेव कामेही ति 'वत्थुकामेहि पि विविच्चेवा' ति अत्थो युज्जति, तेन कायविवेको वुत्तो होति। विविच्च अकुसलेहि धम्मेही ति। किलेसकामेहि सब्बाकुसलेहि वा विविच्चा ति अत्थो युजति, तेन चित्तविवेको वुत्तो होति। पुरिमेन चेत्थ वत्थुकामेहि विवेकवचनतो एव 'कामसुखपरिच्चागो, दुतियेन किलेसकामेहि विवेकवचनतो नेक्खम्मसुखपरिग्गहो विभावितो होति। एवं वत्थुकामकिलेसकामविवेकवचनतोयेव च एतेसं पठमेन सङ्किलेसवत्थुप्पहानं, दुतियेन सङ्किलेसप्पहानं । पठमेन लोलभावस्स हेतुपरिच्चागो, दुतियेन बालभावस्स। पठमेन च पयोगसुद्धि, दुतियेन आसयपोसनं विभावितं होती ति वितब्बं । एस ताव नयो कामेही ति एत्थ वुत्तकामेसु वत्थुकामपक्खे। किलेसकामपक्खे पन छन्दो ति च रागो ति च एवमादीहि अनेकभेदो कामच्छन्दो येव कामो ति अधिप्पेतो। सो च अकुसलपरियपन्नो पि समानो "तत्थ कतमो कामो? छन्दो कामो" (अभि०२-३०८) ति आदिना नयेन विभने झानपटिपक्खतो विसुं वुत्तो। किलेसकामत्ता वा पुरिमपदे वुत्तो, अकुसलपरियापन्नत्ता दुतियपदे। अनेकभेदतो चस्स कामतो ति अवत्वा कामेही ति वुत्तं। अजेसं पि च धम्मानं अकुसलभावे विजमाने "तत्थ कतमे अकुसला धम्मा? काम है, राग काम है, सङ्कल्प राग काम है-इन्हें काम कहा जाता है" -इस प्रकार क्लेशकाम कहे गये हैं, उन सबको इसी में संगृहीत समझना चाहिये। ऐसी स्थिति में "कामों से विरहित होकर ही" का अर्थ इस प्रकार समझना चाहिये-"वस्तुकामों से भी विरहित होकर ही": एवं इसके द्वारा 'कायविवेक' बतलाया गया है। विविच्च अकुसलेहि धम्मेहि (अकुशल धर्मों में विरहित होकर)-इसका अर्थ यह समझना चाहिये-क्लेश कामों से या सभी अकुशलों से विरहित होकर । इसके द्वारा 'चित्तविवेक' बतलाया गया है। एवं इस प्रकार प्रथम के द्वारा 'कामसुखों का परित्याग' सूचित होता है; क्योंकि यहाँ केवल वस्तुकामों से विरहित होना कहा है। दूसरे से नैष्काम्य में सुख का परिग्रह सूचित होता है; क्योंकि यह 'क्लेशकामों से विरहित होना' बतलाया है। 'यों 'वस्तुकाम, क्लेशकाम, विवेककाम जो कहा गया है, उनमें प्रथम (=वस्तुकामविवेक) से संक्लेशवस्तु का प्रहाण एवं दूसरे से संक्लेश का प्रहाण; प्रथम से लोलुपता के हेतु का परित्याग, दूसरे से अविद्या (बालभाव) का; प्रथम से प्रयोग-आजीव) शुद्धि एवं दूसरे से आशय (=अभिरुचि) का परिष्कार सूचित होता है-ऐसा जानना चाहिये। जब 'कामों से काम का तात्पर्य वस्तुकाम' समझा जाता है, तब यह उपर्युक्त नियम है; किन्तु यदि उन्हें क्लेशकाम के अर्थ में लिया जाय तो छन्द, राग आदि अनेक भेदों वाले कामच्छन्द से ही 'काम' का तात्पर्य है। और यद्यपि वह काम 'अकुशल' में समाविष्ट है, तथापि "वहाँ कौन काम है? छन्द काम है" आदि प्रकार से विभा में ध्यान का प्रतिपक्ष होने से पृथक् रूप से कहा गया है। अथवा, क्लेशकाम होने से पूर्वपद में एवं अकुशल में समाविष्ट होने से उत्तरपद में कहा गया है। एवं इस काम के अनेक भेद होने से एकवचन-काम से-न कहकर 'कामों से-ऐसा बहुवचन का प्रयोग किया गया है। एवं यद्यपि अन्य धर्मों में भी अकुशलता हो सकती है, किन्तु "उनमें कौन अकुशल हैं?
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy