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विसुद्धिमग्ग
सत्तसप्पायसेवनकथा १६. तत्रायं रक्खणविधि
आवासो, गोचरो,भस्सं, पुग्गलो, भोजनं, उतु। इरियापथो ति सत्तेते असप्पाये विवज्जये ॥ सप्पाये सत्त सेवेथ, एवं हि पटिपज्जतो।
नचिरेनेव कालेन होति कस्सचि अप्पना॥ (१) तत्रस्स यस्मि आवासे वसन्तस्स अनुप्पन्नं वा निमित्तं नुपज्जति, उप्पन्नं वा विनस्सति, अनुपट्ठिता च सति न उपट्ठाति, असमाहितं च चित्तं न समाधियति, अयं असप्पायो। यत्थ निमित्तं उप्पज्जति चेव थावरं च होति, सति उपट्ठाति, चित्तं समाधियति नागपब्बतवासि-पधानियतिस्सत्थेरस्स विय, अयं सप्पायो। तस्मा यस्मि विहारे बहू आवासा होन्ति, तत्थ एकमेकस्मि तीणि तीणि दिवसानि वसित्वा यत्थस्स चित्तं एकग्गं होति, तत्थ वसितब्बं । आवाससप्पायताय हि तम्बपण्णिदीपम्हि चूळनागलेणे वसन्ता तत्थेव कम्मट्ठानं गहेत्वा पञ्चसता भिक्खू अरहत्तं पापुणिंसु। सोतापन्नादीनं पन अञत्थ अरियभूमिं पत्वा तत्थ अरहत्तपत्तानं च गणना नत्थि। एवं अजेसु पि चित्तलपब्बतविहारादीसु।
(२) गोचरगामोपन यो सेनासनतो उत्तरेन वा दक्खिणेन वा नातिदूरे दियड्डकोसब्भन्तरे होति सुलभसम्पन्नभिक्खो, सो सप्पायो। विपरीतो असप्पायो।
(३) भस्सं ति द्वात्तिंसतिरच्छानकथापरियापन्नं । तं हिस्स निमित्तन्तरप्रधानाय संवत्तति। दसकथावत्थुनिस्सतं सप्पायं, तं पि मत्ताय भावितब्बं । सात उपयुक्त सेवन
१६. वहाँ निमित्त की रक्षा करने की विधि इस प्रकार है
१. आवास, २. गोचर, ३. वार्तालाप, ४. पुद्गल, ५. भोजन, ६ ऋतु एवं ७. ई-पथ-इन सातों में किसी को भी, अनुपयुक्त होने पर, त्याग दे। और सात उपयुक्तों का सेवन करें। इस प्रकार योजना के अनुसार चलने पर किसी किसी को शीघ्र ही अर्पणा की प्राप्ति होती है।
(१) इनमें, इसे जिस आवास में रहते हुए अनुत्पन्न निमित्त उत्पन्न न हो या उत्पन्न हुआ विनष्ट हो जाय, अनुपस्थित स्मृति उपस्थित न हो, असमाहित चित्त समाहित न हो, वह आवास अनुपयुक्त है। जहाँ नागपर्वत पर रहने वाले पधानिय तिस्स स्थविर के समान निमित्त उत्पन्न होता हो एवं स्थिर भी रहता हो, स्मृति उपस्थित रहती हो, चित्त एकाग्र होता हो वह उपयुक्त है। इसलिये जिस विहार में बहुत से आवास हों, वहाँ एक एक में तीन तीन दिन रहकर, इस प्रकार उनकी परीक्षा कर, जहाँ चित्त एकाग्र हो वहाँ रहना चाहिये। आवास के उपयुक्त होने से ताम्रपर्णी द्वीप ( लंका) की चूळनाग नामक गुफा में रहते हुए वहीं कर्मस्थान ग्रहण कर पाँच सौ भिक्षुओं ने अर्हत्त्व प्राप्त किया । ऐसे स्रोतआपन्न आदि की तो गणना ही नहीं है, जिन्होंने अन्यत्र आर्यभूमियाँ प्राप्त कर वहाँ अर्हत्त्व पाया। इसी प्रकार दूसरे चित्तल पर्वत के विहार आदि में भी समझें।
(२) जो गोचर ग्राम शयनासन से उत्तर या दक्षिण की ओर, बहुत दूर नहीं; ढाई कोस के भातर हो, जहाँ आसानी से भिक्षा मिले, वह उपयुक्त है। विपरीत अनुपयुक्त है।
(३) वार्तालाप- बत्तीस प्रकार के व्यर्थ वार्तालाप (तिरच्छानकथा) के अन्तर्गत आनेवाला वार्तालाप अनुपयुक्त है, क्योंकि वह उसके निमित्त के अन्तर्धान का कारण होता है। दस कथावस्तु