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विसुद्धिमग्ग विहारमज्ञयेव खलं कत्वा धकं मद्दन्ति, पमुखेसु सयन्ति, अलंपि बहुं अफासुंकरोन्ति। यत्रापि महासङ्घभोगो होति, आरामिका कुलानं गावो रुन्धन्ति, उदकवारं परिसेधेन्ति, मनुस्सा वीहिसीसं गहेत्वा "पस्सथ तुम्हाकं आरामिकानं कम्मं" ति सङ्घस्स दस्सेन्ति। तेन तेन कारणेन राजराज-महामत्तानं घरद्वारं गन्तब्बं होति। अयं पि खेत्तसन्निस्सितेनेव सङ्गहितो। (१२)
विसभागानं पुग्गलानं अत्थिता ति। यत्थ अञमधे विसभागवेरी भिक्खू विहरन्ति, ये कलहं करोन्ता "मा, भन्ते, एवं करोथा" ति वारियमाना "एतस्स पंसुकूलिकस्स आगतकालतो पट्ठाय नट्ठम्हा" ति वत्तारो भवन्ति। (१३)
यो पि उदकपट्टनं वा थलपट्टनं वा निस्सितो होति, तत्थ अभिण्हं नावाहि च सत्थेहि च आगतमनुस्सा 'ओकासं देथ, पानीयं, लोणं देथा' ति घट्टयन्ता अफासुं करोन्ति।(१४)
पच्चन्तसन्निस्सिते पन मनुस्सा बुद्धादीसु अप्पसन्ना होन्ति। (१५)
रजसीमसनिस्सिते राजभयं होति। तं हि पदेसं एको राजा 'न मय्हं वसे वत्तती' ति पहरति, इतरो पि'न मय्हं वसे वत्तती' ति। तत्रायं भिक्खु कदाचि इमस्स रञा विजिते विचरति, कदाचि एतस्स।अथ नं'चरपुरिसो अयं' ति मञमाना अनयब्यसनं पापेन्ति ।(१६)
असप्पायता ति। विसभागरूपादिआरम्मणसमोसरणेन वा अमनुस्सपरिग्गहिताय वा असप्पायता। तत्रिदं वत्थु -एको किर थेरो अरजे वसति। अथस्स एका यक्खिनी
(१२) खेत के समीप- जो विहार खेतों से चारों ओर से घिरा हुआ होता है, वहाँ मनुष्य विहार के बीच में ही ऊखल (=जिसमे अनाज का कूटा जाता है) बनाकर धान कूटते हैं, ओसारों में पसारते हैं और भी बहुत प्रकार से उद्विग्न करते हैं। जहाँ भी सङ्घ की महती सम्पत्ति होती है, वहाँ विहार में रहने वाले लोग गृहस्थ कुलों की गायों को घुसने नहीं देते, पानी की बारी का निषेध करते हैं। लोग सूखते हुए धान की बालियों को सिरो से पकड़कर "देखिये अपने विहारवासियो की करतूत!" इस प्रकार सङ्घ को दिखाते हैं। इस-उस कारण से राजा, राजमन्त्रियों के घर जाना पड़ता है-यह भी 'खेत के समीप विहार' में ही संगृहीत है।
(१३) विपरीत (=विरोधी) व्यक्तियों का रहना- जहाँ परस्पर विरोधी, वैरी भिक्षु रहते हैं, जो कि कलह करने पर यदि "भन्ते, ऐसा मत करिये" इस प्रकार रोके जाते है तो "इस पांशुकूलिक के आते ही हम तो विनष्ट हो गये!"-ऐसा झल्लाहट के कारण कहते है।
(१४) बन्दरगाह या विश्रामालय के पास जो विहार होता है, वहाँ रात-दिन नाव से या सार्थ (=काफिले) के साथ आये हुए लोग “स्थान दीजिये, जल दीजिये, नमक दीजिये" इस प्रकार धक्कामुक्की करते हुए साधना में व्यवधान करते रहते हैं।
(१५) सीमावर्ती विहार में-- लोग बुद्ध आदि के प्रति श्रद्धा नहीं रखते (सम्भवतः इसलिये कि वे सीमा के पार रहने वाले विधर्मियों के सम्पर्क में आते हैं) अतः वहाँ भी नहीं रहना चाहिये।
(१६) राज्य की सीमा के समीप विहार में-राजा का भय होता है। उस प्रदेश पर एक राजा "यह क्षेत्र मेरे वश में क्यों नहीं रहता" ऐसा सोचकर आक्रमण करता है तो दूसरा भी मेरे वश में क्यों नहीं रहता' ऐसा सोचकर । वहाँ यह भिक्षु कभी इस राजा के विजित क्षेत्र में विचरता है तो कभी उसके । अतः इसे 'यह गुप्तचर है ऐसा मानकर प्रताडित करते है।