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३. कम्मट्ठानग्गहणनिदेस
१५७ दिसं फरित्वा ति वुत्तो, न निमित्तं वड्वेन्तो। पटिभागनिमित्तमेव चेत्थ नत्थि, यदयं वड्डेय्य। परित्तअप्पमाणरम्मणता पेत्थ परिग्गहवसेनेव वेदितब्बा।
आरुप्पारम्मणेस पि आकासं कसिणुग्घाटिमत्ता। तं हि कसिणापगमवसेनेव मनसि कातब्बं । ततो परं वड्डयतो पि न किञ्चि होति। विज्ञाणं सभावधम्मता। न हि सक्का सभावधर्म वड्डेतुं । विज्ञाणापगमो विज्ञाणस्स अभावमत्तता । नेवसज्ञानासायतनारम्मणं सभावधम्मत्ता येव न वड्डेतब्बं । सेसानि अनिमित्तता। पटिभागनिमित्तं हि वड्डेतब्बं नाम भवेय्य । बुद्धानुस्सतिआदीनं च नेव पटिभागनिमित्तं आरम्मणं होति । तस्मा तं न वड्डेतब्बं ति। एवं वड्डनावड्डनतो। (५)
३०. आरम्मणतो ति। इमेसु च चत्तालीसाय कम्मट्ठानेसु दस कसिणा, दस असुभा, आनापानस्सति, कायगतासती ति इमानि द्वावीसति पटिभागनिमित्तारम्मणानि, सेसानि न पटिभागनिमित्तारम्मणानि। तथा दससु अनुस्सतीसु ठपेत्वा आनापानस्सतिं व कायगतासतिं च अवसेसा अट्ठ अनुस्सतियो, आहारे पटिकूलसा , चतुधातुववत्थानं, विज्ञाणञ्चायतनं, नेवसानासज्ञायतनं ति इमानि द्वादस सभावधम्मारम्मणानि। दस कसिणा, दस असुभा, आनापानस्सति; काबगलासती ति इमानि द्वावीसति निमित्तारम्मणानि। सेसानि छ न वत्तब्बारस्मणानि। तथा विपुब्बकं, लोहितकं, पुळुवकं, आनापानस्सति, आपोकसिणं, तेजोकसिणं, वायोकसिणं, यं च आलोककसिणे सूरियादीनं ओभासमण्डलारम्मणं ति दिशा को सर्वशतः ध्यान में लेकर" कहा गया है, निमित्त का वर्धन करने से नहीं। यहाँ तो प्रतिभागनिमित्त है ही नहीं, जिसका वर्धन किया जाय। परित्र-अप्रमाण आलम्बनता को भी यहाँ परिग्रह के लिये ही जानना चाहिये।
आरूप्य-आलम्बनों में भी आकाशकसिण का उद्घाटनमात्र है, क्योंकि आकाश में ही कसिण रह सकता है। वह कसिण के अभाव के रूप में ही बोधगम्य है। यदि उसका वर्धन भी किया जाय तो • भी कुछ नहीं होगा। विज्ञान स्वभावधर्मता है। स्वमात्र धर्म का वर्धन सम्भव नहीं है। विज्ञान का न होना विज्ञान का अभावमात्र है। नैवसंज्ञानासंज्ञायतन आलम्बन भी स्वभावधर्मता ही है, अतः उसे भी नहीं बढ़ाना चाहिये। शेष निमित्तरहित हैं, इसलिये उनका भी वर्धन नहीं करना चाहिये; क्योंकि प्रतिभानिमित्त ही वर्धनीय है। एवं बुद्धानुस्मृति आदि प्रतिभागनिमित्त नहीं हैं। इसलिये उनका वर्धन नहीं करना चाहिये। यह वर्धन-अवर्धन के अनुसार कर्मस्थान का विनिश्चय है । (५) ।
३०. आलम्बन के अनुसार- इस चालीस कर्मस्थानों में दस कसिण, दस अशुभ, आनापानस्मृति, कायगता स्मृति-ये बाईस प्रतिभागनिमित्त आलम्बन हैं। (अर्थात् इनके आलम्बन प्रतिभागनिमित्त है)। शेष कर्म-स्थान प्रतिभागनिमित्त-आलम्बन नहीं हैं। तथा दस अनुस्मृतियों में आनापानस्मृति एवं कायगता स्मृति को छोड़कर अवशेष आठ अनुस्मृतियाँ, एक आहार में प्रतिकूल संज्ञा, एक चतुर्धातुव्यवस्थान, एक विज्ञानानन्त्यायतन, एक नैवसंज्ञानासंज्ञायतन-ये बारह स्वभावधर्मावलम्बन हैं। दस कसिण, दस अशुभ, आनापानस्मृति, कायगता स्मृति-ये बाईस निमित्तालम्बन हैं। शेष छह इस प्रकार से न कहे जा सकने योग्य आलम्बन हैं। तथा विपुब्बक पीव निकलते रहने के कारण, लोहितक रक्त बहते रहने के कारण, पुलुवक कीड़े रेंगते रहने के कारण, आनापान स्मृति, जलकसिण, तेजकसिण, वायुकसिण, और आलोककसिण के अन्तर्गत सूर्य आदि प्रभामण्डल