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________________ १५४ विसुद्धिमग्ग ६. विक्खित्तकं, ७. हतविक्खितकं, ८. लोहितकं, ९. पुळुवकं, १०. अट्ठकं ति इमे दस असुभा। १. बुद्धानुस्सति, २. धम्मानुस्सति, ३. सङ्घानुस्सति, ४. सीलानुस्सति, ५. चागानुस्सति, ६. देवतानुस्सति, ७. मरणानुस्सति, ८. कायगतासति, ९. आनापानस्सति, १०. उपसमानुस्सति ति इमा दस अनुस्सतियो। १. मेत्ता, २. करुणा, ३. मुदिता, ४. उपेक्खा ति इमे चत्तारो ब्रह्मविहारा। १. आकासानञ्चायतनं, २. विज्ञाणञ्चायतनं, ३. आकिञ्चायतनं, ४. नेवसञानासायतनं ति इमे चत्तारो आरुप्पा। आहारे पटिकूलसा एका.सा। चतुधातुववत्थानं एकं ववत्थानं ति। एवं सङ्घातनिद्देसतो विनिच्छयो वेदितब्बो ॥ (१) २६. उपचारप्पनावहतो ति।ठपेत्वा कायगतासतिं च आनापानस्सतिं च अवसेसा अट्ठअनुस्सतियो, आहारे पटिकूलसा , चतुधातुववत्थानं ति इमानेव हेत्थ दस कम्मट्टानानि उपचारावहानि, सेसानि अप्पनावहानि। एवं उपचारप्पनावहतो ॥ (२). २७. झानप्पभेदतो ति। अप्पनावहेसु चेत्थ आनापानस्सतिया सद्धिं दस कसिणा चतुकज्झानिका होन्ति। कायगतासतिया सद्धिं दस असुभा पठमज्झानिका। पुरिमा तयो ब्रह्मविहारा तिकज्झानिका । चतुत्थब्रह्मविहारो चत्तारो च आरुप्पा चतुत्थज्झानिका ति। एवं झानप्पभेदतो॥ (३) ३. विपुब्बक (=जिसमें जगह-जगह पर पीब निकल रही हो, ऐसा शव), विच्छिद्दक (=कटा हुआ शव), ५. विक्खायितक (=कुत्ते आदि के द्वारा जिसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग खा लिये गये हों, ऐसा शव), ६. विक्खितक (=जिसके अङ्ग प्रत्यङ्ग इधर उधर विखरे पड़े हों, ऐसा शव),७. हतविक्खितक (=जिसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग काट-काट कर विखेर दिये गये हों, ऐसा शव); ८. लोहितक (=रक्त से लिप्त शव): ९. पुलुवक (=क्रिमियों से भरा हुआ शव) और १०. अट्ठिक (=अस्थिपअरमात्र)। दस अनुस्मृतियाँ है- १. बुद्धानुस्मृति, २. धर्मानुस्मृति, ३. सानुस्मृति, ४. शीलानुस्मृति, ५. त्यागानुस्मृति, ६. देवतानुस्मृति, ७. मरणानुस्मृति, ८. कायगता स्मृति, ९. आनापानस्मृति एवं १०. उपशमानुस्मृति। चार ब्रह्मविहार हैं- १. मैत्री, २. करुणा, ३. मुदिता एवं ४. उपेक्षा । चार आरूप्य हैं- १. आकाशानन्त्यायतन, २. विज्ञानानन्त्यायतन, ३. आकिञ्चन्यायतन एवं ४. नैवसंज्ञानासंज्ञायतन। एक संज्ञा है- आहार में प्रतिकूल संज्ञा । एक व्यवस्थान है- चतुर्धातुव्यवस्थान। इस प्रकार संख्या-निर्देश के अनुसार विनिश्चय जानना चाहिये। (१) २६. उपचार और अर्पणा के वाहक के रूप में- कायगता स्मृति एवं आनापानस्मृति को छोड़कर आठ अनुस्मृतियाँ, आहार में प्रतिकूल संज्ञा एवं चतुर्धातुव्यवस्थान-ये ही दस कर्मस्थान उपचार के वाहक हैं, शेष अर्पणा के वाहक हैं। इस प्रकार, उपचार एवं अर्पणा के वाहक के अनुसार विनिश्चय जानना चाहिये। (२) २७. ध्यान के प्रभेद से- अर्पणा के वाहकों में दस कसिण, आनापान स्मृति के साथ, चार ध्यानों को लाने वाले होते हैं। कायगतास्मृति के साथ दस अशुभ प्रथम ध्यान को, प्रथम तीन .
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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