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________________ ३. कम्मट्ठानग्गहणनिद्देस १५३ वट्टति। सेसं रागचरितस्स वुत्तसदिसमेवा ति। इदं वितक्कचरितस्स सप्पायं। (६) अयं अत्तनो चरियानुकूलं ति एत्थ आगतचरियानं पभेदनिदानविभावनसप्पायपरिच्छेदतो वित्थारो। . चत्तालीसकम्मट्ठानकथा न च ताव चरियानुकूलं कम्मट्ठानं सब्बाकारेन आविकतं। तं हि अनन्तरस्स मातिकापदस्स वित्थारे सयमेव आविभविस्सति॥ २४. तस्मा यं वुत्तं "चत्तालीसाय कम्मट्ठानेसु अञ्जतरं कम्मट्ठानं गहेत्वा" ति, एत्थ-१. सङ्घातनिद्देसतो, २.उपचारप्पनावहतो, ३.झानप्पभेदतो, ४.समतिकमतो, ५.वडनावट-नतो, ६.आरम्मणतो, ७.भूमितो, ८.गहणतो, ९.पच्चयतो, १०.चरियानुकूलतो ति इमेहि ताव दसहाकारेहि कम्मट्ठानविनिच्छयो वेदितब्बो। २५. तत्थ सङ्घातनिदेसतो ति। "चत्तालीसाय कम्मट्ठानेसू" ति हि वुत्तं, तत्रिमानि चत्तालीस कम्मट्ठानानि-दस कसिणा, दस असुभा, दस अनुस्सतियो, चत्तारो ब्रह्मविहारा, चत्तारो आरुप्पा, एका सा, एकं ववत्थानं ति। तत्थ–१. पथवीकसिणं, २. आपोकसिणं, ३. तेजोकसिणं, ४. वायोकसिणं, ५.नीलकसिणं, ६.पीतकसिणं, ७. लोहतकसिणं, ८. ओदातकसिणं, ९. आलोककसिणं, १०.परिच्छिन्नाकासकसिणं ति इमे दस कसिणा। १. उद्धमातकं, २. विनीलकं, ३. विपुब्बकं, ४. विच्छिद्दकं, ५. विक्खायतिकं, आलम्बन परिमित ही विहित है। शेष रागचरित के लिये वर्णित के समान ही है। यह सब वितर्कचरित के लिये अनुकूल है। (६) यह अत्तनो चरियानुकूलं' में आयी चर्याओं के प्रभेद, निदान, पहचान एवं अनुकूलता-निर्धारण आदि के अनुसार व्याख्या है।। इतने पर भी चर्यानुकूल कर्मस्थान का सर्वांशतः व्याख्यान नहीं हो पाया। वह तो आगे मातृका-पदों के व्याख्यानप्रसङ्ग में स्वयं ही विवृत हो जायगा। चालीस कर्मस्थान २४. इसलिये, जो कहा गया है कि-"चालीस कर्मस्थानों में से किसी एक कर्मस्थान का ग्रहण करके"-इसमें कर्मस्थान का विनिश्चय इन दस के अनुसार जानना चाहिये १. सङ्ख्यानिर्देश के अनुसार एवं २. उपचार तथा अर्पणा के वाहक, ३. ध्यान के प्रभेद, ४. समतिक्रमण, ५. वर्धन तथा अवर्धन, ६. आलम्बन, ७. भूमि, ८.ग्रहण, ९. प्रत्यय तथा १०. चर्या की अनुकूलता के अनुसार। २५. संख्यानिर्देश के अनुसार- "चालीस कर्मस्थानों में किसी कर्मस्थान का ग्रहण कर"इस प्रकार कहा गया था। वे चालीस कर्मस्थान ये हैं-१० कसिण (कात्य), १० अशुभ, १० अनुस्मृतियाँ, ४. ब्रह्मविहार, ४ आरूप्य, १ संज्ञा तथा १ व्यवस्थान (=४०)। इनमें दस कसिण ये हैं- १. पृथ्वीकसिण, २. जलकसिण, ३ तेजकसिण, ४. वायुकसिण, ५.नीलकसिण, ६. पीतकसिण, ७. लोहित (लाल) कसिण, ८. श्वेतकसिण, ९. आलोककसिण एवं १०. परिच्छिन्नाकाशकसिण। दस अशुभ हैं-१. उद्धमातक (=फूला हुआ शव), २. विनीलक (=नीला पड़ चुका शव),
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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