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________________ १४४ विसुद्धिमग्ग बलवन्तो दोसमोहा मन्दा, तस्स मन्दो अलोभो लोभं परियादातुं न सक्कोति। अदोसामोहा पन बलवन्तो दोसमोहे परियादातुं सक्कोन्ति। तस्मा सो तेन कम्मेन दिन्नपटिसन्धिवसेन निब्बत्तो लुद्धो होति सुखसीलो अकोधनो पञवा वजिरूपमञाणो। "यस्स पन कम्मायूहनक्खणे लोभदोसा बलवन्तो होन्ति अलोभादोसा मन्दा, अमोहो च बलवा मोहो मन्दो, सो पुरिमनयेनेव लुद्धो चेव होति दुट्ठो च । पञवा पन होति वजिरूपमाणो दत्ताभयत्थरो विय। "यस्स कम्मायूहनक्खणे लोभादोसमोहा बलवन्तो होन्ति इतरे मन्दा, सो पुरिमनयेनेव लुद्धो चेव होति दन्धो च, सीलको पन होति अक्कोधनो बहुलत्थेरो विय।। "तथा यस्स कम्मायूहनक्खणे तयो पि लोभदोसमोहा बलवन्तो होन्ति अलोभादयो मन्दा, सो पुरिमनयेनेव लुद्धो चेव होति, दुट्ठो च मूळ्हो च। "यस्स पन कम्मायूहनक्खणे अलोभदोसमोहा बलवन्तो होन्ति इतरे मन्दा, सो. पुरिमनयेनेव अलुद्धो अप्पकिलेसो होति, दिब्बारम्मणं पि दिस्वा निच्चलो, दुट्ठो पन होति दन्धपो च। "यस्स पन कम्मायूहनक्खणे अलोभादोसमोहा बलवन्तो होन्ति इतरे मन्दा, सो पुरिमनयेनेव अलुद्धो चेव होति अदुट्ठो च सीलको च, दन्धो पन होति। "तथा यस्स कम्मायूहनक्खणे अलोभदोसामोहा बलवन्तो होन्ति इतरे मन्दा, सो पुरिमनयेनेव अलुद्धो चेव होति पञवा च, दुट्ठो च पन होति कोधनो। "ये सत्त्व पूर्व हेतुनियम के कारण, पूर्वकृत कर्मों के संस्कारवश, लोभप्रधान, द्वेषप्रधान, मोहप्रधान, अलोभप्रधान, अद्वेषप्रधान और अमोहप्रधान होते हैं। "जिस (पुद्गल) की प्रतिसन्धि (=कर्म-आयूहन) के क्षण में लोभ बलवान् होता है और अलोभ मन्द, अद्वेष-अमोह बलवान् होते हैं और द्वेष-मोह मन्द, उसका मन्द अलोभ लोभ को अभूिभूत नहीं कर सकता; किन्तु उसके अद्वेष एवं अमोह बलवान् होने के कारण द्वेष और मोह को अभिभूत कर सकते हैं। इसीलिये वह उस कर्म के द्वारा दी गयी प्रतिसन्धि के कारण उत्पन्न होने से लोभी, विलासी (=सुखशील) अक्रोधी, प्रज्ञावान् एवं वजसदृश ज्ञान वाला होता है। ___"किन्तु जिसकी प्रतिसन्धि के क्षण में लोभ और द्वेष बलवान् होते हैं एवं अलोभ तथा अद्वेष मन्द, अमोह बलवान होता है मोह मन्द, वह पहले कही गयी विधि के अनुसार ही लोभी एवं द्वेषी होता है, किन्तु प्रज्ञावान् एवं वज के समान ज्ञान वाला होता है; दत्ताभय स्थविर के समान। "जिसकी प्रतिसन्धि के क्षण में लोभ, अद्वेष और मोह बलवान् होते हैं एवं अन्य मन्द, वह पहले कही गयी विधि के अनुसार ही लोभी और मन्द (मन्दबुद्धि या अलस) होता है, किन्तु वह शीलवान् अक्रोधी भी होता है, जैसे बाहुल स्थविर थे। _ "एवं जिसकी प्रतिसन्धि के क्षण में, द्वेष एवं मोह तीनो ही बलवान् होते है एवं अलोभ आदि मन्द, वह पूर्वोक्त विधि के अनुसार ही भोगी, द्वेषी और मूढ होता है। "किन्तु जिसकी प्रतिसन्धि के क्षण में अलोभ, द्वेष एवं मोह बलवान् होते हैं एवं अन्य मन्द, वह पूर्वोक्त विधि के अनुसार ही निर्लोभ एवं अल्प क्लेशों वाला होता है। दिव्य आलम्बनो को देखकर भी आस्थर (=चित्त) नहीं होता। किन्तु द्वेषी और मन्द-बुद्धि होता है।। "जिसकी प्रतिसन्धि के क्षण में अलोभ, अद्वेष एवं मोह बलवान होते हैं एवं अन्य मन्द, वह पूर्वोक्त विधि के अनुसार ही निर्लोभ और अद्वेषी होता है, किन्तु शीलवान् और मन्दबुद्धि भी होता है।
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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