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________________ कम्मट्ठानग्गहणनिद्देसो (ततियो परिच्छेदो) समाधिकथा १. इदानि यस्मा एवं धुतङ्गपरिहरणसम्पादितेहि अप्पिच्छतादीहि गुणेहि परियोदाते इमस्मि सीले पतिट्ठितेन "सीले पतिट्ठाय नरो सपञो चित्तं पञ्जच भावयं" ति वचनतो चित्तसीसेन निद्दिट्ठो समाधि भावेतब्बो। सो च अति सोपदेसितत्ता विञातुं पि ताव न सुकरो, पगेव भावेतुं ,तस्मा वित्थारं च भावनानयं च दस्सेतुं इदं पहाकम्मं होति को समाधि? केनटेन समाधि ? कानस्स लक्खणरसपच्चुपट्ठानपदछानानि? कतिविधो समाधि? को चस्स सङ्किलेसो? किं वोदानं? कथं भावेतब्बो? समाधिभावनाय को आनिसंसो ति? समाधिसरूपं २. तत्रिदं विसज्जनं को समाधी ति? समाधि बहुविधो नानप्पकारको। तं सब्बं विभावयितुं आरब्भमानं विस्सजनं अधिप्पेतं चेव अत्थं न साधेय्य, उत्तरि च विखेपाय संवत्तेय्य, तस्माइधाधिप्पेतमेव सन्धाय वदाम-कुसलचित्तेकग्गता समाधि । कर्मस्थानग्रहणनिर्देश (तृतीय परिच्छेद) समाधिनिरूपण १. अब क्योंकि इस प्रकार धुताङ्ग धारण करने से पूर्ण होने वाले अल्पेच्छता आदि गुणों से परिशुद्ध इस शील में प्रतिष्ठित भिक्षु को "सीले पतिट्ठाय...चित्तं पञ्जच भावयं" इस देशना-वचन में 'चित्त' शीर्षक से निर्दिष्ट समाधि की भावना करना चाहिये; इस समाधि का अतिसंक्षेप में वर्णन करने से पहले तो उसे जानना ही सरल नहीं, फिर उसकी भावना करना तो और भी कठिन है; अतः उसकी विस्तार से व्याख्या एवं भावना-विधि प्रदर्शित करने के लिये ये प्रश्न किये जाते हैं (१) समाधि का स्वरूप क्या है? (२) किस अर्थ में समाधि है? (३) इसके लक्षण, रस, प्रत्युपस्थान एवं पदस्थान क्या हैं? (४) समाधि के कितने प्रकार भेद हैं? (५) इसका संक्लेश (चित्तमल) क्या है? (६) व्यवदान (शुद्धि) क्या है? (७) इसकी भावना कैसे करनी चाहिये? (८) इस की भावना का माहात्म्य क्या है? २. इन उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर क्रमशः ये हैं(१) समाधि का स्वरूप समाधि क्या है? शास्त्र में समाधि बहुविध एवं नाना प्रकार की बतायी गयी है। यदि किसी एक उत्तर के द्वारा उन सब की व्याख्या का प्रयास करें तो ऐसा उत्तर न तो वक्ता के अभिप्राय को और न ही किसी अर्थ (उद्देश्य) को सिद्ध कर पायगा, अपितु वह आगे भ्रम (विक्षेप) का भी कारण हो सकता है; अतः यहाँ केवल अभिप्रेत प्रश्न के विषय में ही कहते हैं कि "कुशल चित्त की एकाग्रता ही समाधि है"।
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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