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________________ २. धुत्तङ्गनिद्देस ११३ ७५. धुतवादो ति। एत्थ पन- १. अस्थि धुतो न धुतवार्दा, २. अस्थि न धुतो धुतवादो, ३. अस्थि नेव धुतो न धुतवादो, ४. अस्थि धुतो चेव धुतवादो च। तत्थ यो धुतङ्गेन अत्तनो किलेसे धुनि,परं पन धुतङ्गेन न ओवदति, नानुसासति, बक्कुलत्थेरो विय, अयं धुतो न धुतवादो। यथाह-"तयिदं आयस्मा बकुलो धुतो न धुतवादो" ति। (१) यो पन न धुतङ्गेन अत्तनो किलेसे धुनि, केवलं अञ्ज धुतङ्गेन ओवदति अनुसासति, उपनन्दत्थेरो विय, अयं न धुतो धुतवादो। यथाह-"तयिदं आयस्मा उपनन्दो सक्यपुत्तो न धुतो धुतवादो" ति। (२) - यो उभयविपन्नो, लाळुदायी विय, अयं नेव धुतो न धुतवादो। यथाह-"तयिदं आयस्मा लाळुदायी नेव धुतो न धुतवादो" ति। (३) यो पन उभयसम्पन्नो, धम्मसेनापति विय, अयं धुतो चेव धुतवादो च। यथाह"तयिदं आयस्मा सारिपुत्तो धुतो चेव धुतवादो चा" ति। (४) ७६. धुतधम्मा वेदितब्बा ति । अप्पिच्छिता, सन्तुट्ठिता, सल्लेखता, पविवेकता, इदमत्थिता ति इमे धुतङ्गचेतनाय परिवारका पञ्च धम्मा "अप्पिच्छतं येव निस्साया" (अं० २-४६४) ति आदि वचनतो धुतधम्मा नाम। तत्थ अप्पिच्छता च सन्तुट्ठिता च अलोभो। सल्लेखता च पविवेकता च द्वीसु धम्मेसु अनुपतन्ति अलोभे च अमोहे च। इदमत्थिता आणमेव। तत्थ च अलोभेन पटिक्खेपवत्थुसु लोभं, अमोहेन तेस्वेव आदीनवपटिच्छादकं मोहं धुनाति। अलोभेन च अनुज्ञातानं पटिसेवनमुखेन पवत्तं कर दिये गये हों या वह धर्म (=स्थिति) जो क्लेशों का धुनना सूचित करता है। वास्तविक धुतवादी समझने के लिये उसे निम्नलिखित रूप में चार भागों में बाँटकर समझना चाहिये। ७५. धुतवादी-जैसे १. कोई धुत है धुतवादी नहीं है; २. धुत नहीं है, धुतवादी है; ३. न धुत है; न धुतवादी है एवं ४. कोई धुत भी है धुतवादी भी है। इनमें, १. जो वकुल स्थविर के समान धुता से अपने क्लेशों को धुन डालता है, किन्तु दूसरे को धुताङ्ग धारण करने का परामर्श या उपदेश नहीं करता वह धुत है, धुतवादी नहीं। जैसा कि कहा गया है-"यह आयुष्मान् वक्कुल धुत है, धुतवादी नहीं" २. किन्तु जो धुताङ्ग से अपने क्लेशों को नहीं धुनता, अपितु केवल दूसरे को सलाह या उपदेश देता है वह उपनन्द स्थविर के समान धुत नहीं है, धुतवादी है। जैसा कि कहा गया है-"यह आयुष्मान् उपनन्द शाक्यपुत्र धुत नहीं, धुतवादी है।" ३. जो लाळुदायी के समानादौनों से रहित है, वह धुत है न धुतवादी है। जैसा कि कहा गया है-"यह आयुष्मान् लाळुदायी न धुत है, न धुतवादी।४. जो धर्मसेनापति (सारिपुत्र) के समान दोनों से युक्त है, वह धुत भी है और धुतवादी भी है, जैसा कि कहा गया है-"यह आयुष्मान् सारिपुत्र धुत भी है, धुतवादी भी है।" ७६. धुत-धर्मों को भी जानना चाहिये- अल्पेच्छता, सन्तोष, उपेक्षा, प्रविवेक, इदमस्तिताये धुतानचेतना के परिवार (रूप) पाँच धर्म धुत धर्म हैं, "अल्पेच्छ के ही आधार पर" आदि वचन के अनुसार । उनमें, अल्पेच्छता और सन्तोष अलोभ है। 'इदमस्तिता' ज्ञान ही है। वह अलोम के द्वारा विरोधी वस्तुओं में लोग को एवं अमोह के द्वारा उनमें ही दोषों को छिपाये रहने वाले मोह को धुनता है। अलोभ के द्वारा कामसुखोपभोग को, जो कि प्रतिसेवन के माध्यम से अनुज्ञात (=बतलाया गया)
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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