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________________ २. धुत्तङ्गनिदेस १११ ७१. अयं पनानिसंसो-"सेय्यसुखं पस्ससुखं मिद्धसुखं अनुयुत्तो विहरती" (दी० ३-१८५) ति वुत्तस्स चेतसो विनिबन्धस्स उपच्छेदनं, सब्बकम्मट्ठानानुयोगसप्पायता, पासादिकइरियापथता, विरियारम्भानुकूलता, सम्मापटिपत्तिया अनुब्रूहनं ति। आभुजित्वान पल्लवं पणिधाय उजु तनु । निसीदन्तो विकम्पेति मारस्स हृदयं यति॥ सेय्यसुखं मिद्धसुखं हित्वा आरद्धवीरियो। निसजाभिरतो भिक्खु सोभयन्तो तपोवनं॥ निरामिसं पीतिसुखं यस्मा समधिगच्छति। तस्मा समनुयुञ्जय्य धीरो नेसज्जिकं वतं ॥ ति॥ अयं नेसज्जिकङ्गे समादानविधानप्पभेदभेदानिसंसवण्णना॥ धुतङ्गपकिण्णककथा ७२. इदानि कुसलत्तिकतो चेव धुतादीनं विभागतो।। समासव्यासतो चापि विज्ञातब्बो विनिच्छयो ॥ (वि० म० २/३) ति इमिस्सा गाथाय वसेन वण्णना होति। तत्श कुसलत्तिकतो ति सब्बानेव हि धुतङ्गानि सेक्ख-पुथुजन-खीणासवानं वसेन सिया कुसलानि, सिया अब्याकतानि, नत्थि धुतङ्गं अकुसलं ति। यो पन वदेय्य- "पापिच्छो इच्छापकतो आरञ्जिको होती" (अं० २-४६३) ७१. और इसका यह माहात्म्य है- ''शय्या-सुख, पार्श्व-सुख ( बगल में किसी के होने का सुख), निद्रा-सुख में रत हो विहरता है"- इस वचन में उक्त चित्त के बन्धन का नाश, सभी कर्मस्थानों में लगने की अनुकूलता, प्रासादिक (शारीरिक सुविधायुक्त) ईर्यापथ का होना, उद्योग के अनुकूल होना, सम्यक प्रतिपत्ति की वृद्धि । ___ शरीर को सीधा रख, पद्मासन लगाकर बैठा हुआ यति मार (काम) के हृदय को कम्पित करता है।। शय्या-सुख एवं निद्रासुख का त्याग कर, उद्योगी, बैठने में रत भिक्षु तपोवन को सुशोभित करता हुआ निरामिष (=विशुद्ध) प्रीतिसुख प्राप्त करता है, अतः धैर्यवान् साधक नैषधिक व्रत में लगा रहे।। यह नैवधिका के समादान, प्रभेद आदि का वर्णन पूर्ण हुआ।। धुताङ्गप्रकीर्णककथा ७२. अब कुशल-त्रिक, धुत आदि के विभाग का संक्षेप एवं विस्तार से भी इन धुताङ्गों का विनिश्चय (निर्णय) जानना चाहिये। अतः इस पूर्वोक्त गाथा के अनुसार इन धुताङ्गों के विषय में अवशिष्ट वर्णन किया जा रहा है। इनमें, कुशलत्रिक से- सभी धुताङ्ग शैक्ष्य, पृथग्जन, क्षीणास्रव के अनुसार कुशल हो सकते हैं या अर्हत् के सन्दर्भ में अव्याकृत हो सकते हैं; किन्तु धुताङ्ग अकुशल नहीं हो सकता। यदि कोई कहे कि "अरण्य में रहने वाला (भी) पापमय इच्छा वाला, स्वच्छन्दचार होता है"
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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