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________________ १३ कार्य दक्षिण के नगरों में ही किया, अतः वे दक्षिण के ही निवासी थे " - ऐसा निष्कर्ष आचार्य कोशाम्बी जी ने उनकी लिखी अट्ठकथाओं के साक्ष्य पर निकाला है। जो कुछ सीमा तक ही ठीक कहा जा सकता है; क्योंकि उक्त अन्तः साक्ष्यों के आधार पर हम इतना ही मान सकते हैं आचार्य बुद्धघोष का अधिकतर जीवनकार्य दक्षिण भारत में हुआ होगा, जन्म नहीं। परिनिर्वाण - कम्बोडिया के निवासी यह मानते हैं कि आचार्य बुद्धघोष महास्थविर का परिनिर्वाण उनके देश (कम्बोडिया) में ही हुआ था । वहाँ 'बुद्धघोषविहार' नामक एक अत्यन्त प्राचीन विहार यथाकथमपि सुरक्षित है। डॉ० विमलचरण लाहा ने भी यही सिद्ध करने का प्रयास किया है ! परन्तु 'चूळवंस' तथा 'बुद्धघोसुप्पत्ति', जो अपेक्षाकृत प्राचीन तथा परम्पराप्राप्त ग्रन्थ हैं, के आधार पर आचार्य का परिनिर्वाण बुद्धगया में बोधिवृक्ष के समीप हुआ, और वहीं श्रद्धालुजनों ने उनके अस्थ्यवशेष पर स्तूप का निर्माण कराया। यह मानने में हमें भी हानि क्या है ! आचार्य बुद्धघोष द्वारा रचित ग्रन्थ १. विसुद्धिमग्ग - संयुक्तनिकाय में आयी दो गाथाओं को व्याख्या के रूप में रचित बौद्धयोग पर अनुपम ग्रन्थ । २. समन्तपासादिका (विनयपिटक की अट्ठकथा ) । ३. कङ्खावितरणी (पातिमोक्ख की अट्ठकथा) । ४. सुमङ्गलविलासिनी ( दीघनिकाय की अट्ठकथा) । ५. पपञ्चसूदनी (मज्झिमनिकाय की अट्ठकथा ) । ६. सारत्थपकासिनी (संयुत्तनिकाय की अट्ठकथा)। ७. मनोरथपूरणी (अङ्गुत्तरनिकाय की अट्ठकथा)। ८. परमत्थजोतिका (खुद्दकनिकाय के खुद्दकपाठ तथा सुत्तनिपात की अट्ठकथा) । ९. अट्ठसालिनी (धम्मसङ्गणि की अट्ठकथा) । १०. सम्मोहविनोदिनी (विभङ्ग की अट्ठकथा) । ११-१५. पञ्चप्पकरणट्ठकथा - अभिधम्मपिटक के अवशिष्ट पाँच ग्रन्थों की अट्ठकथा । १६. जातकट्टवण्णना- जातक की अट्ठकथा । १७. धम्मपदट्ठकथा - धम्मपद की अट्ठकथा । १८. जाणोदय - ज्ञानोदय आदि। यह ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। १९. इनके अतिरिक्त श्री कुप्पूस्वामी शास्त्री ने पदयचूड़ामणि (सिद्धार्थचरितमहाकाव्य) नामक ग्रन्थ को भी आचार्य बुद्धघोष की रचना माना है। परन्तु डॉ० विमलचरण लाहा, प्रमाणों के आधार पर उक्त ग्रन्थ को आचार्य की रचना के रूप में स्वीकृत नहीं कर पा रहे हैं। विसुद्धिमग्ग विसुद्धिमग्ग बौद्धसाहित्य का एक अनुपम ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ प्रधानतः योगशास्त्र का विशद व्याख्यान है, अतः इसमें योगाभ्यास में प्रवृत्त होनेवाले जिज्ञासु के लिये, प्रारम्भ से लेकर सिद्धि तक की समग्र विधियाँ तो क्रमबद्ध पद्धति से वर्णित की ही गयी हैं, साथ ही प्रसङ्गप्रसङ्ग पर बौद्धदर्शन की अन्य विवेचनात्मक गवेषणाएँ तथा ब्राह्मणदर्शनों की विशेषतः व्याकरण, न्याय, सांख्य, योग, आयुर्वेद तथा मीमांसा शास्त्रों की ग्रन्थियाँ भी अतीव सरल भाषा में समझा दी गयी हैं । अतः यदि विद्वान् लोग इस ग्रन्थ को 'बौद्धधर्म का विश्वकोष' कहते हैं तो इसमें
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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