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विसुद्धिमग्ग
(५) पटिपस्सद्धिपारिसुद्धिसीलं ४२. अरहन्तादीनं पन सीलं सब्बदरथप्पटिपस्सद्धिया परिसुद्धत्ता पटिपस्सद्धिपारिसुद्धी ति वेदितब्बं । एवं परियन्तपारिसुद्धिआदिवसेन पञ्चविधं ॥
दुतियसीलपञ्चकं
(पहानसीलादिवसेन) ४३. दुतियपञ्चके पाणातिपातादीनं पहानादिवसेन अत्थो वेदितब्बो। वुत्तं हेतं पटिसम्भिदायं
___ "पञ्च सीलानि-पाणातिपातस्स पहानं सीलं, वेरमणी सील, चेतना सील, संवरो सीलं, अवीतिकमो सीलं। अदिन्नादानस्स, कामेसु मिच्छाचारस्स, मुसावादस्स, पिसुणाय वाचाय, फरुसाय वाचाय, सम्फप्पलापस्स, अभिज्झाय, व्यापादस्स, मिच्छादिट्ठिया, नेक्खम्मेन कामच्छन्दस्स, अव्यापादेन व्यापादस्स, आलोकसाय थीनमिद्धस्स, अविक्खेपेन उद्धच्चस्स, धम्मववत्थानेन विचिकिच्छाय, आणेन अविज्जाय, पामोजेन अरतिया, पठमेन झानेन नीवरणानं, दुतियेन झानेन वितक्कविचारानं, ततियेन झानेन पीतिया, चतुत्थेन झानेन सुखदुक्खानं, आकासानञ्चायतनसमापत्तिया रूपसाय पटिघसाय नानत्तसजाय, विज्ञाणश्चायतनसमापत्तिया आकासानञ्चायतनसाय, आकिञ्चायतनसमापत्तिया विज्ञआणञ्चायतनसआय, नेवसानासायतनसमापत्तिया आकिज्ञायतनसाय, अनिच्चानुपस्सनाय निच्चसाय, दुक्खानुपस्सनाय सुखसज्ञाय, अनत्तानुपस्सनाय अत्तसआय, निब्बिदानुपस्सनाय नन्दिया, विरागानुपस्सनाय रागस्स, निरोधानुपस्सनाय (५) प्रतिप्रश्रधिपरिशुद्धिशील
४२. अर्हत् आदि का शील, सभी दुःखों की शान्ति हो जाने के कारण, सर्वथा परिशुद्ध होने से प्रतिप्रश्रब्धि (शान्ति) परिशुद्धिशील समझना चाहिये। यों, पर्यन्तपरिशुद्धि आदि से शील पाँच प्रकार का भी होता है।। .
द्वितीय शीलपशक ४३. शील के इस द्वितीय पञ्चक-विभाजन में प्राणातिपात आदि के प्रहाणादि भेद से शील का विभाजन समझना चाहिये। जैसे कि पटिसम्भिदामग्ग में कहा गया है
__ "शील पाँच होते हैं- १. प्राणातिपात का प्रहाणशील, २. प्राणातिपात से विरमणि (विराम) शील,३. चेतनाशील, ४.संवरशील एवं ५.अव्यतिक्रम (अनुलद्धन) शील । चोरी, व्यभिचार, असत्यभाषण, चुगली, कठोर वचन, वाचालता, लोभ, प्रतिहिंसा, मिथ्यादृष्टि, नैष्कर्म्य से कामभोगों की इच्छा का, अव्यापाद से व्यापाद, स्फूर्ति (आलोकसंज्ञा) से स्त्यान (शारीरिक आलस्य) व मृद्ध (मानसिक आलस्य), चित्त की एकाग्रता से औद्धत्य, धर्म-सम्बन्धी विचार-विमर्श से विचिकित्सा (सन्देह), ज्ञान से अविद्या, प्रामोद्य (प्रसन्नता) से उदासी (अरति), प्रथम ध्यान से कामच्छन्द आदि छह नीवरण, द्वितीय ध्यान से वितर्क-विचार, तृतीय ध्यान से प्रीति, चतुर्थ ध्यान से सुख-दुःख, आकाशनन्त्यायतन की भावना से रूपसंज्ञा प्रतिघसंज्ञा नानात्वसंज्ञा, विज्ञानानन्त्यायतन की भावना से रूपसंज्ञा प्रतिघसंज्ञा नानात्वसंज्ञा, विज्ञानानन्त्यायतन की भावना से आकाशनन्त्यायतनसंज्ञा, आकिञ्चन्यायतन की भावना से विज्ञानानन्त्यायतनसंज्ञा, नैवसंज्ञानासंज्ञायतन की भावना से आकिञ्चन्यायतनसंज्ञा, अनित्यानुपश्यना से नित्यसंज्ञा, दुःखानुपश्यना (दुःख के अवलोकन=समीक्षण) से सुखसंज्ञा, अनात्मानुपश्यना से