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________________ ११ समझना अत्यन्त दुरूह हो जाता। उन्होंने अपनी अट्ठकथाओं में न केवल बुद्धवचनों का प्रामाणिक अर्थ ही प्रस्तुत किया, अपितु अपने से प्राचीन तथा सम काल के दर्शन, इतिहास, धर्म, राजनीति, अर्थनीति, समाजनीति आदि विषयों का भी यथास्थान समीक्षात्मक वर्णन विस्तार से किया है, इसलिये इतिहाकार आचार्य बुद्धघोष को मुक्तकण्ठ से 'पालिसाहित्य का युगविधायक' मानते हैं। ऐसे महापुरुषों के व्यक्तिगत जीवन के विषय में ज्ञान रखना पुण्यप्रद तथा सामान्य जन के लिये उत्साहवर्धक होता है। बुद्धघोष का जीवनपरिचय परन्तु आचार्य ने भी, अन्य भारतीय मनीषियों की तरह, अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में अधिक कुछ नहीं लिखा। अपनी अट्ठकथाओं के प्रारम्भ और अन्त में उन्होंने जो कुछ लिखा भी है उससे उनकी रचनाओं पर ही कुछ प्रकाश पड़ता है कि वे किस उद्देश्य लिखी गयीं, या किनकी प्रेरणा से लिखी गयीं; परन्तु आचार्य के जीवन के विषय में उनसे कुछ विशेष पता नहीं लगता। सम्भवतः, अन्य भारतीय ऋषि-मुनियों की तरह, बुद्धघोष ने भी अपने महान् उद्देश्य के सामने व्यक्तिगत जीवन की महत्ता को पूर्णतः तिरोहित कर दिया। परन्तु मानव होने के नाते हम उनके मानव रूप के विषय में भी कुछ जानने को उत्सुक हैं, ताकि वह जानकारी हमारे जीवन में भी सम्बल के रूप में काम आ सके। बुद्धघोष के जीवन के विषय में जानने के लिये उनकी लिखी अट्ठकथाओं के अतिरिक्त ये साधन हैं - १. चूळवंस के ३७ वें परिच्छेद की २१५ – २४६ गाथाएँ, २ . बुद्धघोसुप्पति, ३. गन्धवंस, ४. सासनवंस तथा सद्धम्मसंगह । चूळवंस का उपर्युक्त अंश, जिसमें बुद्धघोष की जीवनी है, धम्मकित्ति ( धर्मकीर्ति ) नाम के भिक्षु की रचना है। जिनका काल तेरहवीं शताब्दी का मध्य-भाग है। जबकि बुद्ध ष का जीवन-काल चौथी- पाँचवीं शताब्दी ईस्वी माना जाता है, अतः उनसे आठ-नौ सौ वर्ष बाद लिखी उनकी जीवनी पूर्णतः प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती-‍ - यह तो निश्चित है; फिर भी बुद्धघोष की जीवनी का सबसे अधिक प्रामाणिक वर्णन जो हमें मिलता है, वह यही है। इसी प्रकार ‘गन्धवंस' और 'सासनवंस' तो ठीक उन्नीसवीं सदी की रचनाएं हैं, अतः हम इनके सहारे कितना काम चला सकते हैं! धम्मकित्ति महासामी की 'बुद्धघोसुप्पत्ति' रचना चौदहवीं शताब्दी की है जो चूळवंस के बाद और 'गन्धवंस' और 'सासनवंस' से पहले की रचना है। इस रचना में इतनी अधिक अतिशयोक्तियाँ भरी पड़ी हैं कि सर्वांश में इसका भी प्रामाण्य नहीं माना जा सकता। अतः 'चूळवंस' के उपर्युक्त अंश को ही इस सम्बन्ध में सबसे अधिक प्रामाणिक माना है। उसके अनुसार आचार्य बुद्धघोष की जीवनी कुछ इस प्रकार लिखी जा सकती है आचार्य बुद्धघोष का जन्म गया (विहार) के समीप बोधिवृक्ष के निकट (किसी ग्राम में) ब्राह्मणपरिवार में हुआ । बाल्यावस्था में ही यह ब्राह्मणविद्यार्थी शिल्प और तीनों वेदों में पारङ्गत होकर शास्त्रार्थ करता हुआ भारतवर्ष में जहाँ-तहाँ घूमने लगा। इसको ज्ञान की उत्कट . जिज्ञासा थी, योगाभ्यास में अत्यधिक रुचि थी । एक दिन यह रात्रि में किसी विहार में पहुँच गया। वहाँ पातञ्जल योग पर बहुत अच्छा प्रवचन किया। किन्तु रेवत नाम बौद्ध स्थविर ने इसको वाद-चर्चा में पराजित कर दिया। इन बौद्धभिक्षु के श्रीमुख से बुद्धशासन का अपूर्व वर्णन सुनकर बुद्धघोष को यह विश्वास हो गया कि निर्वाणप्राप्ति का एकमात्र यही मार्ग है। और
SR No.002428
Book TitleVisuddhimaggo Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
PublisherBauddh Bharti
Publication Year1998
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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