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सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् मुनि श्री विद्याविजयजी
तत्वार्थ सूत्र पर क्या अभिप्राय लिखू ? ऐसे सामान्य तात्विक ग्रन्थ को ।जस सुन्दरता के साथ निकाला है, उसको देखकर हर किसी को प्रसन्नता हुए बिना नहीं रह सकती । खास कर. प्रत्येक सूत्र का, पालामा के पाठ के साथ जो समन्वय किया गया है, वह सुवर्ण में सुगन्ध के समान है।
शतावधानी पं० श्री सौभाग्यचन्द्र जी, 'सन्तबाल'
___ मुझे कहना पड़ेगा कि यह प्रयत्न अत्यन्त सुन्दर है और नूतन है । साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दृष्टिं से बाज जैन साहित्य की खोज जो पाश्चात्य एवं पौर्वात्य विद्वान कर रहे हैं, उनको इस कृति से बहुत सहायता मिलेगी। अतएव जैन इतिहास में यह कृति अमर अाधार रूप है ।"....."