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जैन इतिहासिक के प्रखर अभ्यासी विद्वान्
पं० नाथूराम जी प्रेमी, बम्बई . यह एक बिल्कुल नई चीज है । तत्वार्थ सूत्र जैनागमों पर से किस प्रकार संगृहीत हुअा है, यह दृष्टि इस से प्राप्त होगी और जैन साहित्य के विकास क्रम को समझने के लिए यह बहुत उपयोगी होगा.....।
कविरत्न उपाध्याय जैन मुनि श्री अमरचन्द्रजी
अापकी इस शोध ने भारतीय साहित्य में जैनागमों का मस्तक ऊंचा कर दिया है । तत्त्वार्थ सूत्र पर आज के इतिहास में इस प्रकार का तुलनात्मक प्रयत्न कभी नहीं हुआ। सुविस्तृत आगम साहित्य में से प्रत्येक सूत्र का उद्गम स्रोत ढूंढ निकालना, वस्तुतः आपका ही काम है । आपकी यह अमर कृति युग युग चिरञ्जीवी रहे ....... ।