SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३ ) पं० बेचरदास जी दोशी, भू० पू० प्रो० गुजरात विद्यापीठ (अहमदाबाद) आगमों के मूल में तत्वार्थसूत्र सम्बन्धी जो सामग्री पाई, वह सब इस संग्रह में संगृहीत कर दी है । प्रायः अनेक स्थानों में तो तत्वार्थ के मूल सूत्रों और प्रागमों के मूल पाठ के बीच शब्दशः और अर्थशः साम्य दृष्टिगोचर होता है।......" तुलनात्मक दृष्टि से अभ्यास करने वालों के लिए तो यह संग्रह खास तौर पर उपयोगी सिद्ध होगा ।""अागम स्वाध्यायी समन्वयकार श्रीमान् उपाध्याय आत्मारामजी मुनिवर के हृदय को जहां तक मैं समझ सका हूँ, वहां तक मुझ पर उनके समदृष्टि गुण की ही अधिकाधिक छाप है । और इसी दृष्टि से मैं उनके इस संग्रह का प्रयोजन धार्मिक समभाव को उत्पन्न करना एवं अधिकाधिक पुष्ट करना ही समझता हूँ, जो मेरे लिए तो सोलहों आने सन्तोषकारक है।
SR No.002427
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherRatnadevi Jain Ludhiyana
Publication Year1941
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Agam, Canon, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy