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( १२ ) पं० सुखलालजी, प्रो. हिन्दू युनिवर्सिटी, बनारस
श्रापका तत्त्वार्थ विषयक गुटका मिला, तदर्थ कृतज्ञ हूं। इसकी बाह्य रचना अाकर्षक है, पर मैं तो इसके पीछे तो श्रापका आन्तरिक स्वरूप विषयक प्रयत्न है, उसका विशेष श्रादर करता हूं। क्योंकि इस प्रयत्न से तत्त्वार्थ के ऐतिहासिक और तुलनात्मक अभ्यासियों को बहुत कुछ मदद मिलेगी।
श्रापका यह समन्वय मेरे लिए बड़ा ही सन्तोषप्रद है । जिस एक परिशिष्ट में समग्र श्रागमों और तत्त्वार्थ सूत्रों का समन्वय तोलन करने का स्वप्न चिरकाल से था, वह वस्तु विना प्रयत्न से अन्यसाधित सामने देखकर भला किसे अानन्द न होगा ? अतएव मेरी विशाल और माध्यमिक योजना के एक अंश के पूरक रूप से आपके प्रयत्न का सविशेष अादर करना मेरे लिए तो स्वभाव से ही प्राप्त है ।