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जैनशास्त्राचार्य आशुकवि पं० श्री घासीलालजी महाराज आपका सर्वाङ्ग सुन्दर तत्वार्थ समन्वय नामक ग्रन्थरत्न देखकर अतीव आनन्द प्राप्त हुआ । श्रागम साहित्य के अथाह समुद्र का आपने बुद्धि रूप मेरुदण्ड से मथन कर यह ग्रन्थरत्न आपने निकाला है । प्रस्तुत ग्रन्थरत्न के अध्ययन, मनन, एवं तदनुकूल श्राचरण तथा प्रचार करने से जैनशासन की अतीव उत्कृष्ट प्रभावना होगी
। बाबू कीर्तिप्रसादजी जैन भू० पू० अधिष्ठाता जैन गुरुकुल गुजरानवाला ( पंजाब ) आपने तत्वार्थ सूत्र के सब सूत्रों के मूल स्थान खूब ढूंढ निकाले हैं | आपका परिश्रम अतीव सराहनीय है । दिगम्बर और श्वेताम्बर मान्यताऽनुसार जो सूत्रों में न्यूनाधिकता है, उसको भी बड़ी खूबी के साथ अन्त में दिखा दिया है । महाराज श्री की श्रागमसम्बन्धी जानकारी का यह एक अच्छा नमूना है |