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पूर्ति के लिये तो पर्याप्त है ही, परन्तु भारतीय तत्त्वज्ञान की ऐतिहासिक दृष्टि से गवेषणा करने वाले विद्वानों के लिये भी यह बड़े महत्व की वस्तु है । .
जैनतत्वज्ञान के संस्कृत वाङ्मय में तत्वार्थसूत्र का स्थान सबसे ऊचा है। जैन तत्व ज्ञान विषयक संस्कृत भाषा का यह पहला ही ग्रन्थ है । जनधर्म के प्रत्येक सम्प्रदायका इस के लिये बहुमान है । यही कारण है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर आम्नाय के सभी विद्वानों ने, अपनी २ योग्यता के अंनुसार इस पर अनेक भाष्य वार्तिक और विशद टीकाएँ लिखकर अपने स्वत्व एवं श्रद्धा का परिचय दिया है।
तत्वार्थसूत्र के प्रणेता वाचकवर्य उमास्वाति भी अपनी कक्षा के एक ही विद्वान् हुए हैं । जैन विद्वानों में तत्त्वज्ञान । सम्बन्धी संस्कृत रचना में सबसे अग्रस्थान इन्हीं को ही : प्राप्त हुआ है । इन्होंने अपनी उक्त रचना में अागमों में रहे हुए समग्र जैनतत्त्वज्ञान को प्रांजल संस्कृत भाषा में जिस खूबी से संग्रहीत किया है वह उनके प्रौढ़ पाण्डित्य, जैनागम