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## The Nature of the Commerce of Teeth, Lac, Juice, and Hair
**From the Third Light of Yoga Shastra, Verses 101-105:**
1. **Angarajivica** (Commerce of Fire)
2. **Vanajivica** (Commerce of the Forest)
3. **Shakatjivica** (Commerce of the Cart)
4. **Bhatakjivica** (Commerce of Hire)
5. **Sphotkajivica** (Commerce of Explosion)
6. **Dantvaanijya** (Commerce of Teeth)
7. **Laakshavaanijya** (Commerce of Lac)
8. **Rasavaanijya** (Commerce of Juice)
9. **Keshavaanijya** (Commerce of Hair)
10. **Vishavaanijya** (Commerce of Poison)
11. **Yantrapidaakarma** (Commerce of Torture by Machines)
12. **Nilaanchanakarma** (Commerce of Branding)
13. **Asatiposhan** (Commerce of Nourishing the Unworthy)
14. **Davadaan** (Commerce of Setting Fire)
15. **Sarahsosha** (Commerce of Drying up Water Bodies)
(The word "Jivica" is used in the first half of the verse, and "Vaanijya" in the second half, which should be combined with each.)
A Shravak (Jain follower) should renounce these 15 forms of Karmadaan (acts of violence).
**Explanation of the 15 Forms of Violence:**
**1. Angarajivica (Commerce of Fire):**
* Making charcoal by burning wood and trading it.
* The work of bakers, potters, blacksmiths, goldsmiths, brick makers, etc.
**Explanation:**
Making charcoal involves the potential for harming many stationary and mobile beings. Therefore, all forms of violence related to fire are included in Angarajivica. This is a detailed explanation of one type of Karmadaan; the other types should be understood in the same way.
**2. Vanajivica (Commerce of the Forest):**
* Selling leaves, flowers, and fruits from trees, whether cut or uncut.
* Earning a living by grinding or crushing grains in a mill.
**Explanation:**
Vanajivica primarily involves the potential for harming plant life.
**3. Shakatjivica (Commerce of the Cart):**
* Making carts and their parts, such as wheels and axles, either by oneself or by others.
* Selling or buying carts.
**Explanation:**
Shakatjivica is harmful because it leads to the oppression of all beings and causes the killing and binding of animals like oxen, horses, and cows.
**4. Bhatakjivica (Commerce of Hire):**
* Earning a living by transporting goods on carts, oxen, camels, buffaloes, donkeys, mules, or horses for a fee.
* Hiring out these animals or vehicles.
**Explanation:**
Hiring out motor vehicles is also considered Bhatakjivica.
**5. Sphotkajivica (Commerce of Explosion):**
* Earning a living by digging wells, quarrying stones, or engaging in other activities that involve disturbing the earth.
**Explanation:**
These activities can harm beings that live in the earth.
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दंत-लाक्षा-रस-केश-वाणिज्य कर्म का स्वरूप
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक १०१ से १०५ अर्थ :- १. अंगारजीविका, २. वनजीविका, ३. शकटजीविका, ४. भाटकजीविका, ५. स्फोटकजीविका, (श्लोक
के पूर्वार्ध में उक्त 'जीविका' शब्द है; इसी तरह उत्तरार्द्ध में 'वाणिज्यक' शब्द है, जिसे प्रत्येक के साथ जोडना चाहिए।) ६. दंतवाणिज्य. ७. लाक्षावाणिज्य, ८. रसवाणिज्य, ९. केशवाणिज्य, १०. विषवाणिज्य, १२. यंत्रपीडाकर्म, १३. निलांछनकर्म, १४. असतीपोषण, १५. दवदान, (दावाग्नि लगाने का कर्म), १६. सरःशोष-(तालाब आदि का सुखाना)। श्रावक को इन १५ कर्मादान रूप अतिचारों का
त्याग करना चाहिए ।।९९-१००।। अब क्रमशः १५ अतिचारों की व्याख्या करते हैं। इनमें से सर्वप्रथम अंगारकर्म रूपी आजीविका का स्वरूप बताते हैं।२७२। अङ्गार-भ्राष्ट्रकरणं कुम्भायःस्वर्णकारिता । ठठार-त्वेष्टकापाकाविति ह्ययंगारजीविका ॥१०१।। अर्थ :- लकड़ी को जलाकर कोयले बनाना और उसका व्यापार करना, भड़भूजे, कुंभार, लुहार, सुनार, ठठेरे
और ईटें पकाने वाले इत्यादि के कर्म अंगारजीविका कहलाती है ॥१०१।। व्याख्या :- लकड़ियाँ जलाकर अंगारे (कोयले) बनाना, उन्हें बेचना, अंगारकर्म है। कोयले बनाने से कई स्थावर एवं त्रसजीवों की विराधना की संभावना होती है। इसलिए मुख्यतया अग्निविराधना रूप जो-जो आरंभ होता है, वह अंगारकर्म में समाविष्ट हो जाता है। यहां कर्मादान के एक भेद को विस्तार से समझाया है बाकी के भेद भी इसी प्रकार समझ लेने चाहिए। तात्पर्य यह है कि अनाज को सेककर आजीविका करने वाले भड़भूजे, कुम्हार, लुहार, सुनार, ईंट या मिट्टी के बर्तन आदि बनाकर आंवे में पकाकर बेचने वाला. मिठाई आदि बनाने के लिए भट्टी सलगाकर आजीविका चलाने वाला, अंगारजीवी है। ये लोग लोहा, सोना, चांदी आदि धातुओं को गलाकर, उसे घड़कर गहने बनाते है, घडे, बर्तन आदि बनाते हैं, तांबा, सीसा, पीतल आदि धातुओं को गलाकर इनके विविध बर्तन बनाते हैं तथा उनके विभिन्न डिजाइन बनाते हैं। ये और इसी प्रकार की आजीविका चलाना-विशेषतः वर्तमानयुग में मुख्यरूप से कारखाने आदि जिसमें अग्नि की विराधना विशेष होती है, वे सभी अंगारजीविका के अंतर्गत माने जाते हैं ।।१०१।।
अब वनजीविका के विषय में कहते हैं।२७३। छिन्नाछिन्नवन-पत्र-प्रसून-फलविक्रयः । कणानां दलनात् पेषाद् वृत्तिश्च वनजीविका ॥१०२॥ __ अर्थ :- जंगल में कटे हुए या नहीं कटे हुए वृक्ष के पत्ते, फूल, फल आदि को बेचना, चक्की में अनाज दलकर
या पीसकर आजीविका चलाना इत्यादि जीविका वनजीविका है। वनजीविका में मुख्यतः वनस्पतिकाय का विघात होने की संभावना है ।।१०२।। स्कूटर, सायकल, मोटर बनाना, उसके पार्ट आदि बनाना और
बेचना ये सभी शकट जीविका में है। अब शकटजीविका के विषय में कहते हैं।२७४। शकटानां तदङ्गानां घटनं खेटनं तथा । विक्रयश्चेति शकटजीविका परिकीर्तिता ।।१०३।। अर्थ :- शकट यानी गाड़ी और उसके विविध अंग-पहिये, आरे आदि स्वयं बनाना, दूसरों से बनवाना अथवा
बेचना या बिकवाना इत्यादि व्यवसाय को शकटजीविका कहा है ।।१०३।। शकटजीविका समस्त जीवों के उपमर्दन का हेतुभूत एवं बैल, घोड़ा गाय आदि के वध एवं बंधन का कारण होने से त्याज्य है ।।१०३।।
अब भाटकजीविका के बार में कहते हैं।२७५। शकटोक्षलुलायोष्ट्रखराश्वतरवाजिनाम् । भारस्य वाहनाद् वृत्तिर्भवेद् भाटकजीविका ॥१०४॥ अर्थ :- गाड़ी, बैल, ऊंट, भैंसा, गधा, खच्चर, घोड़ा आदि पर भार लादकर किराया लेना अथवा इन्हें किराये
पर देकर आजीविका चलाना, और मोटर आदि वाहन किराये से देना भाटक जीविका कहलाता है
||१०४।। अब स्फोटजीविका के विषय में कहते हैं।२७६। सर:कूपादिखनन-शिलाकुट्टनकर्मभिः । पृथिव्यारम्भसम्भूतैर्जीवनं स्फोटजीविका ॥१०५।।
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