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गीता दर्शन भाग-60
एक सूत्र आपको सारे संताप से मुक्त कर देने के लिए काफी है। मां अपने बेटे को बुद्धि के ढंग से नहीं जानती। सोचती नहीं क्योंकि फिर आपके हाथ में कुछ नहीं रह जाता। न आपको परेशान | | उसके बाबत; जानती है। हृदय की धड़कन से जुड़कर जानती है। होने का कोई कारण रह जाता है। और न आपको शिकायत की कोई | | वह उसे पहचानती है। वह पहचान कुछ और मार्ग से होती है। वह जरूरत रह जाती है। और न आपको कहने की जरूरत रह जाती है | मार्ग सीधा-सीधा खोपड़ी से नहीं जुड़ा हुआ है। वह शायद हृदय कि ऐसा क्यों है? बीमारी क्यों है? बुढ़ापा क्यों है? मौत क्यों है? | | की धड़कन से और भाव, अनुभूति से जुड़ा हुआ है। कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं रह जाती। आप जानते हैं कि वही | | परमात्मा को जानने के लिए बुद्धि उपकरण नहीं है। बुद्धि को एक तरफ से बनाता है और दूसरी तरफ से मिटाता है। और वही | रख देना एक तरफ मार्ग है। इसलिए सारी साधनाएं बुद्धि को हटा बीच में सम्हालता भी है।
देने की साधनाएं हैं। और बुद्धि को जो एक तरफ उतारकर रख दे, इसलिए हमने परमात्मा का त्रिमूर्ति की तरह प्रतीक निर्मित किया जैसे स्नान करते वक्त किसी ने कपड़े उतारकर रख दिए हों, ऐसा है। उसमें तीन मूर्तियां, तीन तरह के परमात्मा की धारणा की है। | प्रार्थना और ध्यान करते वक्त कोई बुद्धि को उतारकर रख दे, शिव, ब्रह्मा, विष्णु, वह हमने तीन धारणा की हैं। ब्रह्मा सर्जक है, | | बिलकुल निर्बुद्धि हो जाए, बिलकुल बच्चे जैसा हो जाए,. स्रष्टा है। विष्णु सम्हालने वाला है। शिव विनष्ट कर देने वाला है। | बाल-बुद्धि हो जाए, जिसे कुछ बचा ही नहीं, सोच-समझ की कोई लेकिन त्रिमूर्ति का अर्थ तीन परमात्मा नहीं है। वे केवल तीन चेहरे बात ही न रही, तो तत्क्षण संबंध जुड़ जाता है। हैं। मूर्ति तो एक है। वह अस्तित्व तो एक है, लेकिन उसके ये तीन __ क्यों ऐसा होता होगा? ऐसा इसलिए होता है कि बुद्धि तो बहुत ढंग हैं।
| संकीर्ण है। बुद्धि का उपयोग है संसार में। जहां संकीर्ण की हम __ और वही ज्योतियों की ज्योति, माया से अति परे कहा जाता है। | खोज कर रहे हैं, क्षुद्र की खोज कर रहे हैं, वहां बुद्धि का उपयोग तथा वह परमात्मा बोधस्वरूप और जानने के योग्य है एवं तत्वज्ञान | है। लेकिन जैसे ही हम विराट की तरफ जाते हैं, वैसे ही बुद्धि बहुत से प्राप्त होने वाला और सबके हृदय में स्थित है। | संकीर्ण रास्ता हो जाती है। उस रास्ते से प्रवेश नहीं किया जा सकता __ अविज्ञेय है, समझ में न आने वाला है, और फिर भी जानने | है। उसको हटा देना, उसे उतार देना। योग्य वही है। ये बातें उलझन में डालती हैं। और लगता है कि संतों ने न मालम कितनी तरकीबों से एक ही बात सिखाई हैं कि एक-दूसरे का विरोध है। विरोध नहीं है। समझ में तो वह नहीं कैसे आप अपनी बुद्धि से मुक्त हों। इसलिए बड़ी खतरनाक भी है। आएगा, अगर आपने समझदारी बरती। अगर आपने कोशिश की क्योंकि हमें तो लगता है कि बुद्धि को बचाकर कुछ करना है, बुद्धि कि बुद्धि से समझ लेंगे, तर्क लगाएंगे, गणित बिठाएंगे, आयूँ| | साथ लेकर कुछ करना है, सोच-विचार अपना कायम रखना है। करेंगे, प्रमाण जुटाएंगे, तो वह आपकी समझ में नहीं आएगा। कहीं कोई हमें धोखा न दे जाए। कहीं ऐसा न हो कि हम बुद्धि को क्योंकि सभी प्रमाण आपके हैं, आपसे बड़े नहीं हो सकते। सभी उतारकर रखें, और इसी बीच कुछ गड़बड़ हो जाए। और हम कुछ तर्क आपके हैं; आपके अनुभव से ज्यादा की उनसे कोई उपलब्धि भी न कर पाएंगे। नहीं हो सकती। और सभी तर्क बांझ हैं; उनसे कोई अनुभव नहीं ___ तो बुद्धि को हम हमेशा पकड़े रहते हैं, क्योंकि बुद्धि से हमें मिल सकता।
लगता है, हमारा कंट्रोल है, हमारा नियंत्रण है। बुद्धि के हटते ही लेकिन जानने योग्य वही है। तो इसका अर्थ यह हुआ कि जानने | नियंत्रण खो जाता है। और हम सहज प्रकृति के हिस्से हो जाते हैं। की कोई और कीमिया, कोई और प्रक्रिया हमें खोजनी पड़ेगी। बुद्धि इसलिए खतरा है और डर है। इस डर में थोड़ा कारण है। वह उसे जानने में सहयोगी न होगी। क्या बुद्धि को छोड़कर भी जानने खयाल में ले लेना जरूरी है। का कोई उपाय है? क्या कभी आपने कोई चीज जानी है, जो बुद्धि __ अगर आपको क्रोध आता है, तो बुद्धि एक तरफ हो जाती है। को छोड़कर जानी हो?
जब क्रोध चला जाता है, तब बुद्धि वापस आती है। और तब आप अगर आपके जीवन में प्रेम का कोई अनुभव हो, तो शायद | | पछताते हैं। जब कामवासना पकड़ती है, तो बुद्धि एक तरफ हो थोड़ा-सा खयाल आ जाए। प्रेम के अनुभव में आप बुद्धि से नहीं जाती है। और जब काम-कृत्य पूरा हो जाता है, तब आप उदास जानते; कोई और ढंग है जानने का, कोई हार्दिक ढंग है जानने का। और दुखी और चिंतित हो जाते हैं कि फिर वही भूल की। कितनी
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