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________________ शल्यतन्त्रम्। २२१ होता है । इस प्रकार शोधन करने से जब पूय बनना बन्द होजाय तब व्रण का रोहण करना चाहिये ॥३३०॥ पूर्वमुक्तं शुद्धस्य सतः प्ररोहः स कैव्यरित्याहनिम्बस्य पत्रैमधुना घृतेन मिश्रीकृतैरस्य ततः प्ररोहः । सर्पिर्विमित्रैर्यवसक्तभिर्वा प्ररोहणं वाप्यथ पञ्चवल्कैः ॥ ३३१ ।। ततोऽस्य शुद्धस्य प्ररोहः कार्यः । कैः ? निम्बस्य पत्रैर्मधुना घृतेन च मिश्रीकृतैरेकीकृतैः । कदाचित् यवसक्तुभिवां सर्पिर्विमित्रैः संयुक्तैः प्ररोहणं कार्यम् । अथवेति योगान्तरमाह-पञ्चवल्कैः पञ्चशल्कैः पूर्वोक्तैः वटादिभिः सपिर्विमित्रैः प्ररोहणं कार्यमिति ॥३३१ ॥ शोधन करने के पश्चात् व्रणरोहणार्थ नीम के पत्तों को पीसकर मधु एवं घी में मिश्रित कर प्रलेप देना चाहिये अथवा जौ के सत्तओं को या वट आदि पञ्चवल्कल की छाल के चूर्णो को घृत में मिला लेप देने से शीघ्र रोहण होता है ॥ ३३१॥ इदानी व्रणरोहणं गुग्गुलुतिक्तकं घृतमाह क्षुद्रामृतावृषनिम्बपटोलपत्रक्वाथेन सत्रिकटुकत्रिफलापुरेण । सिद्धं घृतं व्रणभगन्दरगण्डमाला नाडीषु शस्तमिति गुग्गुलुतिक्तकाख्यम् ॥ ३३२॥ क्षुद्रादिक्वाथेन त्रिकटुकादिकल्केन च। घृतं सिद्धं व्रणादिषु शस्तम् । क्षुद्रा कण्टकारिका। अमृताह्वा गुडूची। वृषं वासकम् । निम्बपटोलयोः पत्राणि । पुरो गुग्गुलुः । क्षुद्रादीनि प्रत्येकं दशपलिकानि सलिलद्रोणे निःक्वाथ्य चतुर्भागावशेषे क्वाथे। त्रिकटुकत्रिफलाकल्केन प्रत्येकं त्रिकार्षिकप्रमाणेन गुग्गुलुपञ्चपलैघृतप्रस्थं सिद्धं लघुगुग्गुलुतिक्तकमिति ॥ ३३२॥ गुग्गुलुतिक्तकघृत-गव्यघृत २ प्रस्थ । क्वाथार्थ-छोटी कटेरी, गिलोय, अडूसा, नीम की छाल, पटोलपत्र, प्रत्येक १० पल, जल २ द्रोण, अवशिष्ट क्वाथ आधा द्रोण । कल्कार्थ-कालीमिर्च, पिप्पली, सोंठ, हरड़, बहेड़ा, आंवला; प्रत्येक ३ कर्ष (६ तोले) विशुद्ध गुग्गुलु ५ पल । यथाविधि घृतपाक करें। इसके अन्तः प्रयोग से व्रणों का शोधन एवं रोहण होता है। यह घृत व्रण, भगन्दर, गण्डमाला तथा नाडीव्रण में अत्यन्त हितकर है ॥ मात्रा-आधा तोला ॥ ३३२॥
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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