SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोषचिकित्सा | १८७ " द्रवेण यावता शुष्कमेकीभूयाद्वतां व्रजेत् । द्रवप्रमाणं निर्दिष्टं भिषग्भिर्भावनाविधौ” । तस्मात् स्थितमेतदिति ॥ २७९ ॥ द्राक्षा, शतावर, क्षीरविदारी, विदारीकन्द, पृष्टपर्णी, शालिपर्णी, पुष्करमूल, पाढ़, इन्द्रजौ, काकड़ासिंगी, कुटकी, रास्ता, मोथा, गोरखमुण्डी, दन्तीमूल, चित्रकमूल, चव्य, गजपिप्पली, वीरा ( जटामांसी अथवा महाशतावरी ), अष्टवर्ग ( काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, ऋद्धि, वृद्धि ); प्रत्येक १ पल, जल २ द्रोण, अवशिष्ट क्वाथ आधा द्रोण (८ प्रस्थ ) । इस क्वाथ के सात भाग करके प्रत्येक भाग से एक २ दिन भावना दें। इस प्रकार सात दिन भावना दें। परन्तु यतः सम्पूर्ण काथ को एक दिन बना कर पड़ा रहने देने से वह बिगड़ जाता है अतः प्रतिदिन नवीन कषाय बनाकर ही भावना देनी चाहिये । तथा च उपर्युक्त परिमाण के अनुपात से ही एक दिन के काथ्य द्रव्यों को लेकर उसी अनुपात में जल द्वारा काथ करना चाहिये ॥ २७१ ॥ अनेन क्रमेण शुद्धं शिलाजतु ततश्चैतैर्योजयेत् । इत्यत आहधात्रीमेषविषाणिकात्रिकटुकैरेभिः पृथक् पञ्चभिद्रव्यैश्च द्विपलोन्मितैरपि पलं चूर्णाद्विदारीभवात् । तालीसात् कुडवश्चतुःपलमिह प्रक्षिप्यते सर्पिषस्तैलस्य द्विपलं पलाष्टकमथो क्षौद्राद्भिषग् योजयेत् ॥ २७२ ॥ धात्र्यादीनामितरेतरद्वन्द्वः । धात्री अमलकी । मेषविषाणिका पश्टङ्गी । त्रिकटुकं शुण्ठीमरिचपिप्पल्यः । एषां धात्र्यादीनां प्रत्येकं द्विपलिकानां चूर्णम् । विदारीभवाच्चूर्णात् पलम् । तालीसात् तालीसपत्रात् कुडवश्चत्वारि पलानि । सर्पिषो घृतात् चतुःपलम् । एतत्सर्व प्रक्षिप्यते नियुज्यते । तैलस्य द्विपलम् । प्रधानकल्पनया तिलतैलस्य । क्षौद्रात् मधुनः पलाष्टकमष्टौ पलानि भिषक् वैद्यो योजयेत् योगं कुर्य्यादिति ॥ २७२ ॥ 1 इस प्रकार १६ पल शोधित तथा भावित शिलाजीत में आंवला, मेढासिंगी, पिप्पली, कालीमिर्च, सोंठ; प्रत्येक का चूर्ण २ पल, विदारीकन्द का चूर्ण १ पल, तालीसपत्र का चूर्ण ४ पल, गव्यघृत ४ पल, तिल तैल २ पल, शहद ८ पल; मिश्रित करें ॥ २७२ ॥ १–वृद्धवाग्भटे तु मेषविषाणिकास्थले कर्कट शृङ्की पठ्यते एवं चक्रदत्तेऽपि । परन्तु चक्रदत्तेऽत्र धात्र्याः स्थले कटुक इति पाठः समुपलभ्यते तन्नातिसंगतम् वृद्धवाग्भटेऽपि धात्रीपाठोपलम्भात् ।
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy