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________________ १७६ चिकित्साकलिका | पुष्करमूल, वायविडंग, अतीस, गजपिप्पली; प्रत्येक समभाग । सम्पूर्ण चूर्ण के समान विशुद्ध गुग्गुलु । प्रथम किंचित् घृत से गुग्गुलु को पीटकर नर्म कर लेना चाहिये । पश्चात् उपर्युक्त चूर्ण मिश्रित कर गोलियां बनालें । मात्रा -४ रत्ती से ८ रत्ती तक । अनुपान - दूध, जल, कांजी, अथवा मुद्गयूष । इसके सेवन से पाण्डुरोग, क्षय, ऊर्ध्ववात, उन्माद, आमवात, शोथ, प्रमेह, हृच्छूल, पृष्ठशूल, कोष्टशूल, कटिशूल ( कमर में दर्द), वङ्क्षणशूल, कुक्षिशूल, कक्षाशूल, (कांख में दर्द ), कुष्ठ तथा श्वित्र; प्रभृति रोग नष्ट होते हैं ।। २५४ - २५६ ॥ इति आयुर्वेदाचार्य श्रीजयदेव विद्यालंकार विरचितायां परिमलाख्यायां चिकित्साकलिकाव्याख्यायां शूलचिकित्सा समाप्ता । 11:01 अथोदावर्त्तचिकित्सा ॥ शूलचिकित्सानन्तरं यथोद्देशमुदावर्त्तचिकित्सितमाह - गोमूत्रराठफलरामठदन्तिनीभिः सेहुण्डसैन्धवविडैश्व गुडप्रगाढैः । आगारधूमसहितैरिति वर्त्तिरेषा न्यस्ता गुदे ग्रथितविट्वटकामयनी ।। २५७ ।। गोमूत्रादिवर्त्तिरेषा गुदे न्यस्ता योजिता ग्रथित विट्वटकामयनी भवति । विट् पुरीषं तस्य वटकाः । ग्रथिताश्च ते विट्वटकाश्च प्रथितविट्वटकाः तदाख्य आमयो रोगो ग्रथितविवटकामयः उदावर्त्तः तं हन्ति या वर्त्तिः सा ग्रथितविट्वटकामयनी । राठफलं मदनफलम् । रामठं हिङ्ग । शेषाणि प्रसिद्धानि । गोमूत्रादिद्रव्यैर्गुडप्रगाढैर्गुडप्रधानैः । आगारधूमो गृहधूमस्तेन सहितैः सम्मिश्रैः । एतदुक्तं भवति - गोमूत्रे गुडमग्निना विलाप्य रामठफलादीनां चूर्ण प्रक्षिप्याङ्गुष्ठप्रमाणां वत्तिं कृत्वा गुदे न्यस्तव्या ॥ २५७ ॥ इति उदावर्त्तचिकित्सा समाप्ता । गोमूत्रादिवर्त्ति - गोमूत्र में वर्त्ति निर्माण के लिये अनुरूप गुड डालकर पकावें । जब गाढ़ा हो जाय तब मैनफल, हींग, दन्तीबीज, सेहुण्ड का दूध, सैन्धा -
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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