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हिक्काचिकित्सा। कपित्थमध्यं कपित्थगिरं सत्र्यूषणं सत्रिकटुकं मधुना सह छईि निहन्ति ॥ २४६॥
इति छर्दिचिकित्सा समाप्ता। ___ हरड़, बहेड़ा, आंवला, पिप्पली, काली मिर्च, लाजा, रसौत, बेर की गुठली की मींगी; इनके चूर्णो को एकत्र सम परिमाण में मिश्रित कर २ मासा मात्रा में मधु के साथ चाटने से अथवा त्रिकटु तथा कैथ फल प्रत्येक को सपरिमाण में मिश्रित कर मधु के साथ चाटने से छर्दि (वमन) शीघ्र निवृत्त होती है ॥ २४६ ॥
इति आयुर्वेदाचार्य श्रीजयदेव विद्यालंकार विरचितायां परिमलाख्यायां चिकित्साकलिकाव्याख्यायां छर्दिचिकित्सा समाप्ता।
-::-- . अथ हिक्काचिकित्सा। छर्दिचिकित्सानन्तरं यथोद्देशं हिक्काचिकित्सितमाहवसन्तदूतीकुसुमं फलं च सगैरिका तिक्तकरोहिणी च । योगद्वयं क्षौद्रसमन्वितं तु हिका हरेत्साद्भुतभाषणाश्च ॥२४७॥
वसन्तदृती पाटला तस्याः कुसुमं फलं च क्षौद्रसमन्वितमित्येको योगः । तिक्तकरोहिणी कटुका सगैरिका गैरिकेण सह क्षौद्रसमन्विता इति द्वितीयोयोगः । योगद्वमवलेहद्वयं समधु हिक्कां हरेदिति। अद्भुतभाषणञ्च मनःसाध्वसभावकारि वचनम् । तेन साहिता साद्भुतभाषणा तां तथाभूतां हिक्कामित्यर्थः ॥ २४७ ॥
__ इति हिक्काचिकित्सा समाप्ता। पाटला के पुष्प तथा फल को परस्पर समभाग में मिश्रित कर मधु के साथ चाटने से अथवा विशुद्ध गेरू तथा कटुकी को समपरिमाण में मिश्रित कर २ रत्ती मात्रा में मधु के साथ चाटने से भीषण शब्द युक्त हिक्का शान्त होती है ॥ २४७ ॥ इति आयुर्वेदाचार्य श्रीजयदेव विद्यालंकार विरचितायां परिमलाख्यायां चिकित्साकलिकाव्याख्यायां
हिक्काचिकित्सा समाप्ता ।
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