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________________ १६२ चिकित्साकलिका। तुलया शतेन समेताः संयुक्ताः । अवलेहे संजाते तस्मिन्शिशिरे अतिशीतले क्षौद्रं मधु क्षिपेत् । कियत् ? अष्टपलप्रमाणम् । त्रिकटोः त्रिकटुकस्य च पलत्रयं विचूर्ण्य । चतुर्जातकभेषजानां च पलं विचूर्ण्य क्षिपेत् इति सम्बन्धः॥ इत्यनेन प्रकारेण अश्विभ्यां अश्विनीकुमाराभ्यां कल्पिता भार्यभया भार्गीहरीतकी तदाख्योऽवलेहो भार्यभयावलेहः । इह आयुर्वेदप्रयुक्तमात्रः उपयुक्तमात्रोऽचिरेणैव कालेन अयं श्वासादीन जयेदिति ॥ इति श्वासचिकित्सा ॥ २२५-२२८ ॥ भार्गीहरीतकी-दशमूल; मिलित १ तुला (१०० पल अथवा १० सेर), भारंगी १०० पल, पोटली में बंधी हुई हरड़ १०० (संख्या से ); काथार्थ जल ४ द्रोण; अवशिष्ट क्वाथ १ द्रोण । इस क्वाथ को छान कर इसमें १ तुला गुड़ तथा क्वाथकाल में स्विन्न की हुई पूर्वोक्त १०० हरड़ डालकर पकावें । पकाते २ जब गाढा होजाय तब नीचे उतार लें और शीतल होने पर त्रिकटुः मिलित ३ पल, छोटी इलायची, दारचीनी, तेजपत्र, नागकेसर;प्रत्येक १ पल, मधु ८ पल; इनका प्रक्षेप देकर अच्छी प्रकार आलोडन करलें । मात्रा-लेह १ तोले से २ तोले तक तथा एक हरड़ । अश्विनीकुमारों द्वारा निर्मित भार्गीहरीतकी के प्रयोग से श्वास, पांचों प्रकार का कास, षडूप अथवा एकादशरूप युक्त दारुण शोष (राजयक्ष्मा), हिक्का, दुष्ट कफ, छर्दि (के), उरोविकार (फुप्फुसरोग), अरुचि, प्रमेह तथा अपस्मार, प्रभृति रोग नष्ट होते हैं । तन्त्रान्तरों में इसका ही नाम भार्गीगुड़ है। भेद केवल इतना ही है कि इस में चतुर्जातक अर्थात् त्रिसुगन्धि तथा नागकेसर का पृथक् २ एक पल दिया जाता है और अन्यत्र नागकेसर की जगह ४ तोले यवक्षार का प्रक्षेप देते हैं। तन्त्रान्तरोक्त भार्गीगुड़ में मधु ६ पल डालने का आदेश है । आज कल वैद्य हरीतकी का इस प्रकार पाक न करके उसके चूर्ण को गुड़ मिश्रित क्वाथ को पकाते समय डाल कर पाक करते हैं । अधुनिक विधि द्वारा पाक किये हुए अवलेह की मात्रा-आधा तोला ॥ २२५–२२८ ॥ अथ यथोद्देशं कासचिकित्सामाह तत्र भार्यभयानन्तरं व्याघ्री हरीतकीमाहव्याघ्रीशतं स्यादभयाशतं च द्रोणे जलस्य प्रपचेत् कषायम् । तुलाप्रमाणेन गुडेन युक्तं पक्त्वाभयाभिः सह ताभिरत्र ॥२२९॥ शीते क्षिपेच्छण्मधुनः पलानि पलानि च त्रीणि कटुत्रिकस्य । त्वपत्रकलाकरिकेसराणां चूर्णात्पलं चेति विदेहदृष्टः ॥२३०॥ क्षुद्रावलेहः कफजान् विकारान् सश्वासशोफानपि पश्चकासान् । हिक्कामुरोरोगमपस्मृतिं च हन्याद् विवृद्धिं च करोति वढेः ॥२३१॥
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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