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धारण
“ अवतारत्रयं विष्णोर्मेथिलैः कबलीकृतम् । इति संचिन्त्य भगवान् नारसिंहं वपुर्दधौ " ॥ १ ॥ भावार्थ - विष्णु ने पहिले तीन अवतार किए अर्थात् मत्स्य, कच्छ और वाराह रूप से प्रकट हुए, किन्तु उनको मैथिलों ने खा डाला । तब तो भगवान् ने क्रोध करके नारसिंह शरीर को धारण किया, क्योंकि मैथिल यदि उसको खाते तो स्वयं ही भक्षित हो जाते । यद्यपि यह श्लोक हास्यप्रयुक्त है, तथापि वास्तविक विचार करने पर भी मैथिलों का व्यवहार मत्स्य, कच्छप वगैरह जीवों के संहार करने का अवश्य मालूम होता है ।
सामान्य नीति यह है कि जिसके कुल में भारी पण्डित या महात्मा हुआ हो वह कुल भी उत्तम माना जाता है, इसलिये उस कुल में कोई आपत्ति आवे तो -लोग उसके सहायक होते हैं । तो जिसको लोग भगवान् मानते हैं उस भगवान् का अवतार जिस जाति में हो, उस जाति का यदि नाश होता हो तो उसका उद्धार करना चाहिये, किन्तु उद्धार के बदले नाश ही किया जाता हो तो कैसा अन्याय है ? यह भी एक विचारtय बात है । और भी एक विचार करने का अवसर है कि जो पुरुष मछली खाता है वह समस्त मांस को ही खाता है, इसके प्रमाण के लिये मनुस्मृति के ५ वें अध्याय के पृ. १८१ में श्लोक १६ को देखिये
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“ यो यस्य मांसमश्नाति स तन्मांसाद उच्यते । मत्स्यादः सर्वमांसादस्तस्माद् मत्स्यान् विवर्जयेत् ॥ १५ ॥