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________________ ( ८४ ) फिर प्रेतों में किसकी गणना होगी ? अर्थात् यही मनुष्यरूप से प्रेतगण हैं । एवं रीत्या कान्यकुब्जों के व्यवहार पर भी एक कवि ने ऐसा लिखा है कि " कान्यकुब्जा द्विजाः सर्वे सूर्या एव न संशयः । मीनमेषादिराशोनां भोक्तारः कथमन्यथा ? " ॥ १ ॥ भावार्थ - इसमें कुछभी सन्देह नहीं है, कि कान्यकुब्ज ब्राह्मण सूर्य ही हैं, यदि वे ऐसे न होते तो मीन (मछली) तथा मेष ( बकरे ) इत्यादि का भक्षण क्यों करते ? | प्रसङ्गानुसार यहां पर यह भी कह देना उचित है कि जो मांसादि को खानेवाले कहते हैं कि ' तन्त्रक्रिया करनेवालों को तो अवश्यही मद्य, मांसभक्षण तथा बलिप्रदान करनाही चाहिए, क्योंकि ये सब बातें शास्त्र संमत हैं इस के विषय में देवीभक्त किसी सज्जनने ठीक कहा है कि "या योगीन्द्रहृदि स्थिता त्रिजगतां माता कुपकवता सा तुष्येत् श्वपचीव किं पशुवधैर्मासासवोत्सर्जनैः ? । तस्माद् वीरवराऽवधारय तदाचारस्य यद् बोधकं रक्षोभिर्विरचय्य तच वचनं तन्त्रे प्रवेशीकृतम् ॥ १२ ॥ भावार्थ - सब जीवों पर सदा दयाही रखनेवाली, योगाभ्यासियों के हृदय में निवास करनेवाली, तीनों जगत् की माता देवी चाण्डाली की भांति पशुवध से तथा मांस और मद्य देने से क्या प्रसन्न हो सकती है ?
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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