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(८२) ब्रमो वयं सकलशास्त्रविचारदक्षा
जम्बीरनीरपरिपूरितमत्स्यखण्डे " ॥१॥ अर्थात्-यद्यपि कोई लोग कहते हैं कि देवलोक में अमृत रहता है, और कोई कहते हैं कि स्त्री के अधरोष्ठपल्लव में अमृत स्थित है; किन्तु सकलशास्त्रविचारचतुर हमलोग (मांसाहारी) कहते हैं कि नींबू के जल से भरपूर मछली के टुकड़े में ही अमृतास्वाद है। - सजन महाशय ! तत्त्ववेत्ताओं ने तो पूर्वोक्त श्लोक के तृतीय पाद का “ब्रूमो वयं सकलशास्त्र विचारशून्याः" ऐसा ठीक ठीक पाठ बना दिया है, क्योंकि विचारशून्य मनुष्य की इच्छा है कि वह चाहे जैसी बकवाद करे, क्योंकि सद्बुद्धि के अभावसे मनुष्य बहुत अनर्थ करता है; याने देव को अदेव और अदेव को देव, गुरु को अगुरु और अगुरु को गुरु, धर्म को अधर्म, और अधर्म को धर्म, तत्त्व को अंतत्त्व और अतत्त्व को तत्त्व, भक्ष्य को अभक्ष्य और अभक्ष्य को भक्ष्य, इत्यादि विपरीत मानकर भयङ्कर भूल में पड़कर संसारसागर में (वह जीव ) सदा घूमताही रहता है। इसीलिये सब लोगों को कल्पित बातों पर ध्यान न देकर वास्तविक अहिंसा धर्म को ही स्वीकार करना चाहिये। किन्तु जो मनुष्य मांसरसलम्पट होता है वही अपनी इच्छानुसार मनमाने श्लोक भी बना लेता है । यथा" रोहितो नः प्रियकरः मद्गरो मद्गुरुप्रियः।
हिल्सी तु घृतपीयूषो वाचा वाचामगोचरः" ॥१॥