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________________ ( ८१ ) इत्यादि जो बहुत से श्लोक महाभारत में लिखे हुए हैं उन्हें जिज्ञासुओं को उसी स्थल पर देख लेना उचित है । इन पूर्वोक्त श्लोकों में समस्त शास्त्र का रहस्य दिया हुआ है । अतएव जीवन की इच्छा न रखकर, जो उत्तम पुरुष स्वमांस से पर मांस की रक्षा करते हैं, अर्थात् मरणान्त तक परोपकार करने की इच्छा करते हैं, वे ही पुरुष देवलोक के सुख को पाते हैं । और जो पुरुष मांस को तुच्छ मानते और उसको पुत्रमांस की उपमा देते हुए भी मोह से उसे खाता है उससे बढ़कर तो अधर्मी कोई नहीं है, क्योंकि धर्मशास्त्र में मांसत्यागी पुरुष को ही धर्मात्मा माना है । इसीलिये लिखा है कि कोई एक मनुष्य यदि सौ वर्ष तक महीने महीने अश्वमेध यज्ञ करे, और दूसरा केवल मांस का ही त्याग करे, तो वे दोनों तुल्य ही हैं, कदाचित, भूल से या अज्ञान से मांस कभी खा लिया हो और पीछे छोड़ दे, तो, जो फल चारों वेदों से और संपूर्ण यज्ञों से नहीं मिलता है वह फल केवल उसे मांसत्याग से ही मिल जाता है । पाठकवर्ग ! यह बड़े आश्चर्यकी बात है कि ऐसा सीधा और सरल उपदेश होने पर भी मनुष्य ऐसी अनुचित प्रवृत्ति में क्यों पड़ते हैं ? अस्तु, मैं तो उनके कर्म का ही दोष देकर आगे चलता हूँ । एक बड़े खेद की यह भी बात है कि बहुत से मांसाहारी लोग तो अपनी चतुराई से नये नये श्लोक बनाकर नयी नयी कल्पनाद्वारा भव्यपुरुषों को भ्रमजाल में डालने के लिये भी प्रयत्न करते हैं । यथा “ केचिद वदन्त्यमृतमस्ति पुरे सुराणां केचिद् वदन्ति वनिताsधरपल्लवेषु ।
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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