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________________ ( ७६ ) अभय पाता है ऐसा मैंने सुना है । धर्मात्मा पुरुष तो आपत्तिकाल में और सम्पत्तिकाल में सब भूतों की रक्षा ही करता है । किन्तु वर्त्तमानकाल के कितने ही स्वार्थी पुरुष दया नहीं करते और कितने ही धर्मतत्त्व के जानकार होनेपर भी अपने पास पाले हुए गौ, भैंस, घोड़े वगैरह को जब बेकार देखते हैं तब उन्हें पशुशाला में छोड़ देते हैं या दूसरों के हाथ बेच देते हैं किन्तु बहुत से नास्तिकलोग तो अनुपयोगी जानवरों को गोली से मार देते हैं, यदि इसका मूल कारण देखा जाय तो हृदय में दयादेवी का संचार न होना ही है, तथा सामान्यनीति को भी स्वार्थान्ध होने के कारण नहीं देखते हैं, किन्तु सच्चे धार्मिक पुरुष तो अनुपयोगी पशु का भी पालन करते हैं । पूर्वोक्त निःस्वार्थ दया करनेवाले पुरुष पर व्यात्र, सिंह, पिशाच, राक्षसादि कोई भी क्रूर जन्तु कभी उपद्रव नहीं करते । इसलिये संसार में प्राणदान से अधिक कोई दान नहीं है, क्योंकि प्राण से अधिक प्रिय कोई बी चीज नहीं दिखाई पडती है । हे भारत 1 ! सब प्राणियों को मृत्यु के तुल्य कुछ भी अनिष्ट दिखाई नहीं देता, अर्थात् मृत्युकाल में कैसा ही दृढ पुरुष क्यों न हो उस समय उसको भी डर मालूम होता ही है । जिन माहानुभाव पुरुषों की समाधि ( सुख ) से मृत्यु होती है उनको भी स्वेद कम्पादिरूप शरीर धर्म तो अवश्य होते हैं क्योंकि वह शरीर का स्वभाव ही है | देखिये योगियों का जब शरीर से संबन्ध छुटता है तब वे केवल आत्मतत्त्व में ही लवलीन होते हैं, उस अवस्था में भी
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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